ब्रेकिंग
किसानों से लिया जा रहा है 300 से 400 सो ग्राम ज्यादा धान::- इंद्र साव बारदाना की कमी से जूझ रहा किसान, ना पीने का पानी,ना सर ढकने के लिए छत ग्राम दामाखेड़ा आश्रम :- घटना में शामिल 16 आरोपियों की गिरफ्तारी एवं 01 किशोर बालक के विरुद्ध विधिवत कार्रवाई ग्राम दामाखेड़ा आश्रम:- घटित घटना में शामिल 16 आरोपियों की गिरफ्तारी एवं 01 किशोर बालक के विरुद्ध विधिवत कार्रवाई हटिया विधान सभा में कॉंग्रेस की जीत सुनिश्चित हो रही है-सुशील शर्मा जिला बलौदाबाजार-भाटापारा पुलिस द्वारा अवैध रूप से डंप किया गया भारी मात्रा में शराब का जखीरा किया गया बरामद थाना हथबंद क्षेत्र अंतर्गत ग्राम केसदा मे... क्षेत्रीय विधायक इन्द्र साव ने रावणभाठा स्थित दशहरा मैदान के मुख्यमंच से नगर वासियों और क्षेत्रवासियो को विजयादशमी पर्व की बधाई दी विधायक इंद्र साव के प्रयास से भाटापारा राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़ा विधायक के प्रस्ताव को केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दी स्वीकृति सुशील शर्मा को आगामी झारखंड प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाने हटिया विधान सभा क्रमांक 64 का पर्यवेक्षक नियुक्त किया जिला बलौदाबाजार-भाटापारा पुलिस द्वारा रोड में खड़ी ट्रकों के पहिए चोरी करने वाले गिरोह का किया गया पर्दाफाश पुलिस द्वारा ट्रकों के पहिए व बैटरी जैक च... खड़ी ट्रैकों में हो रही लगातार चोरी से परेशान भाटापारा ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन द्वारा विरोध प्रदर्शन पद यात्रा करते हुए शहर थाने में ज्ञापन सौंपा गया

14 गांवो की गवरी को हजारों लोग देखने आए, बच्चे और महिलाओं में दिखा जोश; विधायक भी नाचे

उदयपुर:  सुबह 11 बजे से हुई इस गवरी में शाम तक हजारों लोग देखने आए।राजस्थान में पहली बार गवरी महाकुंभ का आयोजन हुआ। उदयपुर में आयोजित इस लोकनाट‌्य और नृत्य में 14 गवरी की टीमों के कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए नाटक मंचन किए। 1800 से ज्यादा कलाकारों ने सुबह से शाम तक दर्जन भर नाट‌‌क मंचन करते हुए मनोरंजन किया। इस गवरी को देखने के लिए हजारों लोग पहुंचे।उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा की ओर से इसका आयोजन हुआ। इससे पहले भी मीणा 11 गवरी टीमों के कलाकारों का एक साथ गवरी का आयोजन करवा चुके हैं। असल में गवरी एक लोक नृत्य ही माना गया है जो गांव में खुशहाली लाने के लिए किया जाता है। विश्व में एक मात्र मेवाड़ ही है, जहां ये लोक परंपरा है।विधायक फूलसिंह मीणा ने इस बार 21 गांवो की गवरी को आमंत्रित किया था। हालांकि 7 गांवों की गवरी के कलाकार किन्हीं कारणों से नहीं आ सके। उदयपुर-बलीचा मार्ग पर होटल हर्ष पैलेस के बाद चौक में गवरी का आयोजन हुआ। इस गवरी महाकुंभ में डोडावली, पछार, अलसीगढ़, पाई, चनावदा, रवा, अमरपुरा बारांपाल, लेई रकमपुरा ढ़ीकली, डाकनकोटडा, करनाली और काया गांव के लोग शामिल हुए। यह सभी गांव उदयपुर शहर से सटे अलग-अलग आदिवासी अंचल के गांव के रहने वाले 1800 कलाकार लोग थे। इन गवरी कलाकारों में ज्यादात्तर प्रवासी है, जो दिल्ली, मुंबई और गुजरात समेत कई अलग-अलग इलाकों में रहकर नौकरी करते हैं। रक्षाबंधन के 1 दिन बाद से ये सभी अपने गांव की गवरी में शामिल होकर गवरी खेल रहे है।गवरी टीम के कलाकारों के साथ विधायक फूलसिंह मीणा।विधायक मीणा ने बताया कि पिछले 20 सालों से हर साल वे गवरी का आयोजन करवा रहे हैं। पिछले 2 सालों में कोरोना के चलते गवरी का आयोजन नहीं करवा पाए तो इस बार उन्होंने कुछ बड़ा करने का सोचा था। ऐसे में उन्होंने इस बार 21 गांवो की गवरी टीमों से बात कर आमंत्रण दिया था। 3 साल पहले वे 11 टीमों का एक साथ आयोजन करवा चुके हैं।सुबह 11 बजे से शुरू हुई इस महागवरी में अलग-अलग नाटक के मंचन ने सभी का मनोरंजन किया। लोग अपने छोटे बच्चों के साथ आए और उन्हें इस लोक नृत्य के बारे में बताया। बुजुगों के साथ ही महिलाएं भी गवरी देखने आई। भील समाज के युवाओं व बुजुर्गों ने गवरी नृत्य में अपनी पारंपरिक कला का बखुबी प्रदर्शन किया।कलाकारों द्वारा हिंदी, अंग्रेजी, मारवाड़ी व मेवाड़ी भाषा को कुछ इस अंदाज से बयां किया की सभी का मन मोह लिया। गवरी के मंचन में कलाकारों के द्वारा लोहार, कंजर, मीणा बंजारा का खेल चोर- पुलिस और कांजी-गुर्जर समेत एक दर्जन प्रसंगों पर कलाकारों द्वारा प्रस्तुति दी गई।विधायक फूलसिंह सुबह से गवरी देखने आए लोगों से मिलते रहे। कई बार नाचते भी रहे।दरअसल मेवाड़ में रक्षाबंधन के एक दिन बाद से गवरी के आयोजन हो रहे है। यह प्रसिद्व लोक नाट्य और नृत्य है, जो भील जाति द्वारा 40 दिनों तक किया जाता हैं। माता गोरज्या और शिव की अराधना के रूप में इसका आयोजन किया जाता है। गवरी में सभी 150 कलाकार पुरुष होते हैं, जिनमें कई महिलाओं का किरदार निभाते हैं। मान्यता है कि नृत्य करने से गौरज्या माता लड़ाई-झगड़े और दु:ख से छुटकारा दिलाती हैं।अमरपुरा से आए लक्ष्मण महाराज ने बताया कि गवरी में हिस्सा लेने वाले कलाकारों के लिए बहुत कड़े नियम होते हैं। जो गवरी करते हैं, वे 40 दिन तक नहीं नहाते हैं। हरी सब्जियां और मांस-मदिरा का त्याग कर दिन में सिर्फ एक बार ही खाना खाते हैं। नंगे पांव रहने के साथ ही सवा महीने तक अपने घर ना जाकर मंदिर में रहते हैं। जमीन पर सोते हैं। इसमें दो दर्जन से ज्यादा बाल कलाकार भी होते हैं।डोडावली गांव से आए कलाकार गोपीलाल ने बताया कि मानव जाति में भील सबसे पुरानी जाति है और गवरी इनकी आदिमकाल से चली आ रही लोक परंपरा है। यह नृत्य शिव-पार्वती को केन्द्र में रखकर किया जाता है। जिस गांव में यह व्रत लिया जाता है, उस गांव के हर आदिवासी घर से एक व्यक्ति यह व्रत करता है। इससे पूरा गांव इससे जुड़ जाता है।