कोयले के खपत बढऩे का असर बिजली के दाम पड़ेगा
भोपाल । पावर प्लांट में बिजली बनाने पर कोयले की खपत बढ़ गई है। ऐसा उन इकाइयों में हो रहा है जहां सुपर क्रिटिकल यूनिट लगी हुई है। इन इकाइयों में कम कोयले में अधिक बिजली पैदा होती है, इसके बावजूद श्री सिंगाजी पावर प्लांट खंडवा में एक यूनिट बिजली बनाने में तय मानक से 200-250 ग्राम कोयला अधिक जलाना पड़ रहा है। इससे जहां कोयले की खपत अधिक हो रही है, वहीं आम उपभोक्ता पर भी बिजली के दाम बढऩे पर इसका असर पड़ेगा। हर तिमाही फ्यूल कास्ट एडजस्टमेंट (एफसीए ) के जरिए दर का निर्धारण होता है। अभी अक्टूबर माह से ही एफसीए 20 पैसे प्रति यूनिट हो गया। ऊर्जा विभाग ने श्री सिंगाजी पावर प्लांट की लगातार खामियों को देखते हुए मप्र पावर जनरेशन कंपनी ने जानकारी मांगी है। जिसके बाद प्रबंध संचालक और आला अधिकारी प्लांट पहुंचे हैं।
बार-बार खराब हो रही प्लांट की इकाईबिजली मामलों के जानकार एडवोकेट राजेंद्र अग्रवाल का दावा है कि करीब 15 हजार करोड़ रुपये का खर्च श्री सिंगाजी पावर प्लांट पर हुआ। इस प्लांट के निर्माण की उपयोगिता आम जनता को नहीं मिल रही है। तकनीकी संचालन सहीं नहीं होने की वजह से प्लांट की इकाई बार-बार खराब हो रही है। सिंगाजी की नवीन इकाइयों में 600 ग्राम कोयले में एक यूनिट बिजली तैयार होनी चाहिए लेकिन विगत 10 अक्टूबर को 600 की जगह 800 ग्राम कोयला प्रति यूनिट निर्माण में जलाया गया। कई बार एक यूनिट बिजली बनाने में 850 ग्राम कोयला भी जलाया गया है। वर्तमान में कुल चार इकाई में महज दो इकाई से ही बिजली पैदा हो रही है। इसके उलट बिरसिंहपुर पावर प्लांट, सारणी पावर प्लांट में एक यूनिट बिजली बनाने में 620 ग्राम से 660 ग्राम कोयला जलाना पड़ रहा है। यहां पुरानी इकाई से बिजली पैदा हो रही है। इस प्लांट में 660 मेगावाट की तीन नंबर और चार नंबर इकाई बंद है। तीन नंबर इकाई का टरबाइन खराब है जो बन रहा है वहीं चार नंबर इकाई दो दिन पहले बंद हुई है। हाल ही में सालाना रखरखाव के बाद यह इकाई पुन: चालू हुई थी, जिसे फुल लोड पर भी नहीं चलाया जा रहा था। इस तरह की तकनीकी खराबी आने के बाद प्रमुख सचिव ऊर्जा ने मामले में जांच करवाने के निर्देश भी दिए हैं। इस मामले में मप्र पावर जनरेशन कंपनी के ईडी ओएडंएम जनरेशन बीएल नेबल से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं हो पाई।
ऐसे जनता पर असरहर तिमाही बिजली कंपनी बिजली उत्पादन की लागत का आकलन करती है। मुख्य रूप से कोयला और तेल के व्यय का आकलन होता है। जिसके आधार पर तिमाही एफसीए के लिए दर तय होती है। ये किसी तिमाही घट जाती है, कभी बढ़ती है। मप्र विद्युत नियामक आयोग के पास मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी की तरफ से प्रस्ताव भेजा जाता है, जिसके बाद अंतिम निर्णय होता है। उपभोक्ता बिजली की खपत करते हैं उसकी प्रति यूनिट पर एफसीए देय होता है।