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अमावस्या दो दिन, वट सावित्री पूजा तिथि को लेकर संशय, नौ को मनाना श्रेष्ठ

रायपुर। इंटरनेट मीडिया और विविध वाट्सएप ग्रुपों में वट वृक्ष किस दिन मनाएं, इसे लेकर संशय की स्थिति है, क्योंकि पंचांगों में अमावस्या तिथि नौ और कैलेंडर में 10 जून को वट सावित्री पूजा करने का उल्लेख है। इस वजह से श्रद्धालुओं द्वारा पंडित, पुजारियों से पूछा जा रहा है किस दिन मनाना उचित होगा। इसे देखकर पंडितों ने राय दी है कि इंटरनेट मीडिया के चक्कर में न रहें और नौ जून को ही वट सावित्री पूजा करें।

महामाया मंदिर के पुजारी पंडित मनोज शुक्ला का कहना है कि कुछ लोग जानबूझकर श्रद्धालुओं में भ्रम फैलाकर इंटरनेट मीडिया में कुछ भी लिखकर भ्रमित करने में लगे रहते हैं। जब कभी ऐसी कोई शंका हो तो पंचांग के जानकारों से पूछें, इंटरनेट मीडिया में वायरल होने वाली खबरों पर भरोसा न करें। आम लोगों में यह धारणा है कि उदयातिथि यानी सूर्योदय पर पड़ने वाली तिथि पर पर्व, त्योहार मनाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है।

पर्व, त्योहार में उस तिथि की व्याप्ति भी देखी जाती है न कि सूर्य की उदय तिथि। हर व्रत का समय काल अलग अलग होता है। व्रत कई प्रकार के होते है। जैसे सौरव्रत – सूर्योदय से, चंद्रव्रत – चन्द्र उदय से, प्रदोष कालिक – सूर्यास्त के समय, निशीथ कालिक – मध्य रात्रि में, पर्व कालिक – उत्सव के रूप में वर्ष में एक बार मनाने का विधान है। जैसे पूर्णिमा के व्रत में चंद्रोदय का महत्व है, सूर्याेदय से कोई मतलब नहीं है।

इसी तरह गणेश चतुर्थी व्रत प्राय: तृतीया तिथि में ही आता है, लेकिन चंद्रोदय के समय चतुर्थी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है। प्रदोष व्रत प्राय: हर बार द्वादशी तिथि में ही आता है लेकिन प्रदोष(सांयकाल) में त्रयोदशी ही रहती है। सूर्योदय से इस व्रत का कोई मतलब नहीं है।

इसी तरह एकादशी व्रत सूर्योदय कालिक, शरद पूर्णिमा चंद्रोदय काकालिक, रामनवमी मध्या व्यापिनी, जन्माष्टमी आधी रात की अष्टमी, सूर्य सप्तमी सूर्योदय कालिक, अनन्त व्रत में भी मध्या व्यापिनी, महाशिवरात्रि पूजा निशीथ काल में आधी रात को, दीपावली में महाकाली पूजन निशीथ काल में करने का विधान है।

चतुर्दशीयुक्त अमावस्या में पूजन

सुरेश्वर महादेव पीठ के आचार्य स्वामी राजेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि वटसावित्री व्रत के बारे में निर्णयामृत व भविष्य पुराण आदि धर्मशास्त्रों ने 3 दिन तक व्रत ( अर्थात ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी , चतुर्दशी व अमावस्या ) करने का विधान बताया गया है। लोकाचार के अनुसार छत्तीसगढ़ सहित हमारे देश के अधिकतर भागों में ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही इस व्रत को करने की परम्परा है।

निर्णय सिंधु के अनुसार यदि अमावस्या दो दिन हो अर्थात प्रथम दिन यदि सूर्योदय के उपरांत 18 घटी से पूर्व अमावस्या लग जाए तो चतुर्दशी तिथि से विद्ध अर्थात चतुर्दशी युक्त अमावस्या में ही व्रत व संबंधित पूजन करना शास्त्रसम्मत है। श्री काशी विश्वनाथ पंचांग, श्रीदेव पंचांग तथा धर्मसिन्धु के अनुसार यह व्रत नौ जून बुधवार को है।