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Bengal Chunav में फिल्मी चेहरों की भरमार, क्‍या बदलेगी बंगाल विधानसभा चुनाव की तस्वीर!

कोलकाता। बंगाल विधानसभा चुनाव में फिल्मी चेहरों से चुनावी तस्वीर बदलने की कवायद तेज हो गई है। इस समय बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के राजनीतिक ध्रुवीकरण का नया रणक्षेत्र और हथियार बन चुकी है। टॉलीवुड के नाम से प्रसिद्ध बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री पर तृणमूल का प्रभाव डेढ़ दशक से है। ममता बनर्जी के सिंगुर और नंदीग्राम आंदोलन तथा 2011 में 34 वर्षो के वामपंथी शासन के खिलाफ परिवर्तन का माहौल बनाने में टॉलीवुड के फिल्मी चेहरों की अहम भूमिका रही है। यही वजह है कि हरेक चुनाव में ममता बनर्जी फिल्मी चेहरों पर दांव खेलती रही हैं और इसमें उन्हें सफलता भी मिली है, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से स्थिति बदलने लगी। अब बांग्ला फिल्म हस्तियों का झुकाव भाजपा की ओर है।

अभिनेताओं-अभिनेत्रियों और फिल्म निर्देशकों को चुनावी मैदान में उतारने की ममता बनर्जी की रणनीति को अपनाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भी फिल्म उद्योग को अपने पाले में करने का प्रयास शुरू कर दिया है और इसमें उसे सफलता भी मिली है। मशहूर बॉलीवुड अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती का भगवा झंडा थामना यह बताने को काफी है कि बंगाल के फिल्म जगत में परिवर्तन होने लगा है। एक समय नक्सल आंदोलन और वामपंथ के समर्थक होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रहे मिथुन का भारतीय जनता पार्टी में आना बहुत कुछ बयां करता है। बंगाल में फिल्म, संस्कृति, साहित्य जगत पर शुरू से वामपंथी विचारधारा हावी थी, लेकिन वर्ष 2006 के बाद स्थिति बदलने लगी और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने फिल्म जगत के लोगों को अपने साथ जोड़कर वामपंथी शासन को उखाड़ फेंकने के लिए परिवर्तन की मांग करने वाला चेहरा बना दिया।

अब बांग्ला फिल्म जगत भी दो धड़े में बंट चुका है। एक तृणमूल के साथ है तो दूसरा भाजपा के साथ। दोनों ही दलों ने कई फिल्मी हस्तियों को चुनावी अखाड़े में भी उतार दिया है। भाजपा ने 57 सीटों के लिए अपने पार्टी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा जरूर की है, लेकिन उनमें कोई फिल्मी चेहरा नहीं है, हालांकि अभी 237 सीटों के लिए सूची जारी होना बाकी है।

आखिर भाजपा बंगाल में इतने फिल्मी सितारों को क्यों जोड़ रही है? इसका जवाब ममता के उस हमले में छुपा है, जिसमें वह भगवा पार्टी और उनके शीर्ष नेताओं को बाहरी बताने में जुटी हैं। भाजपा इन कलाकारों को खुद से जोड़कर अपने ऊपर लगे बाहरी के ठप्पे से पीछा छुड़ाने और बंगाल के जनमानस में पैठ बनाने की कोशिश में है। वहीं तृणमूल अपनी जमीन मजबूत करने के लिए फिल्म उद्योग से जुड़ी अधिकांश हस्तियों को अपने पाले में ला रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि फिल्मी चेहरों से अधिक वोट तो नहीं खींचा जा सकता, लेकिन वे ग्रामीण और अर्धशहरी इलाकों के मतदाताओं के सियासी रुझान को जरूर प्रभावित कर सकते हैं।

वर्ष 2014 के चुनाव में ममता ने बांग्ला फिल्म अभिनेता तापस पाल और अभिनेत्री शताब्दी राय को मैदान में उतारा था और दोनों जीते थे। इसके बाद 2016 के विधानसभा चुनाव में अभिनेता चिरंजीत और अभिनेत्री देवश्री राय को उतारा और दोनों विधायक निर्वाचित हो गए। लोकसभा चुनावों में अभिनेता देव (दीपक अधिकारी), अभिनेत्री मिमी चक्रवर्ती, नुसरत जहां, शताब्दी राय, मुनमुन सेन, नाट्यकर्मी अर्पिता घोष को भी मैदान में उतारा था। इनमें से देव, मिमी, नुसरत जहां और शताब्दी राय सांसद हैं। वहीं भाजपा ने अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी को उतारा और वह सांसद बन गईं। हालिया चुनाव में ममता ने बांग्ला फिल्म जगत की छह अभिनेत्रियों, तीन अभिनेताओं व एक फिल्म निर्देशक को उतारा है।

वहीं दूसरी ओर मिथुन चक्रवर्ती से पहले टॉलीवुड के चर्चित अभिनेता यश दासगुप्ता, हिरन चटर्जी व रूद्रनील घोष, अभिनेत्री पायल सरकार, श्रबंती चटर्जी, पापिया अधिकारी ने भगवा पार्टी का झंडा थाम लिया था। फिल्मी सितारों के अलावा छोटे पर्दे के कई कलाकार भी इन दोनों दलों में शामिल हुए हैं। बाबुल सुप्रियो, रूपा गांगुली और लॉकेट चटर्जी जहां लंबे समय से भाजपा से जुड़े हुए हैं, वहीं रिमङिाम मित्र, अंजना बसु और कंचना मोइत्र 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में शामिल हुई थीं।

दूसरी तरफ कमलेश्वर मुखर्जी, सब्यसाची चक्रवर्ती, तरुण मजुमदार, अनिक दत्ता, श्रीलेखा मित्र और बादशा मोइत्र जैसे फिल्मी चेहरे हैं, जो आज भी वामपंथियों के साथ हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि फिल्मी चेहरों का राजनीतिक दलों में शामिल होना सफलता के लिए शॉर्टकट अपनाने जैसा है। ऐसे में इन फिल्मी चेहरों से चुनावी तस्वीर बदलती है या नहीं, यह तो दो मई को पता चलेगा। लेकिन एक सवाल यह है कि दक्षिण भारत की तरह बंगाल की फिल्मी हस्तियों को सियासी जीवन में नायकत्व क्यों नहीं प्राप्त हो रहा? वे सहायक की भूमिका में क्यों हैं?