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20 हजार अफगान शरणार्थियों को शरण देगा ब्रिटेन, महिलाओं को दी जाएगी प्राथमिकता

नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अफरातफरी का माहौल है। चुनिंदा देशों को छोड़कर अमेरिका, भारत और सऊदी अरब समेत अन्य देश या तो अपने दूतावासों को बंद कर अपने लोगों को वहां से निकाल चुके हैं या निकालने का काम जारी है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद  24 अगस्त को अफगानिस्तान मुद्दे पर चर्चा के लिए एक विशेष सत्र आयोजित करेगी। इस बीच ब्रिटेन ने 20 हजार अफगान शरणार्थियों को शरण देने की घोषणा की है।

ब्रिटेन की गृह सचिव प्रीति पटेल ने कहा कि देश 20,000 अफगान शरणार्थियों को स्वीकार करेगा। इसमें महिलाओं और लड़कियों को प्राथमिकता दी जाएगी। पटेल ने बुधवार को ब्रिटिश उच्चायोग द्वारा जारी एक बयान में कहा, ‘हमारी नई अफगान नागरिक पुनर्वास योजना उन 20,000 लोगों का स्वागत करेगी, जिन्हें अफगानिस्तान से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है। यूके मुख्य रूप से उन महिलाओं और लड़कियों को आश्रय प्रदान करेगा, जो तालिबान के शासन में अपनी सुरक्षा और भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

अमेरिका ने 3,200 लोगों को निकाला

एफपी न्यूज एजेंसी के अनुसार, अमेरिकी सेना ने युद्धग्रस्त देश से अबतक 3,200 लोगों को निकाल लिया है। वहीं, भारत भी अपने दूतावास के अधिकारियों समेत लगभग 500 लोगों को वापस ला चुका है,जबकि अभी भी कुछ भारतीयों के फंसे होने की संभावना, उन्हें भी वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकारी सूत्रों ने बताया कि भारत ने अपने दूतावास को बंद नहीं किया है और स्थानीय कर्मचारी वहां काउंसलर सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।

महिलाओं को तलिबान का न्योता

तलिबान ने महिलाओं को सरकार में शामिल होने का न्योता दिया है। उन्हें इस्लामिक कानून के तहत अधिकार देने के साथ ही काम करने और पढ़ने की अनुमति देने का भरोसा दिलाया है। तालिबान ने कहा है कि वह किसी दूसरे देश को निशाना बनाने के लिए अपनी जमीन के इस्तेमाल की अनुमति नहीं देगा। इसके अलावा विदेशी सेनाओं के लिए काम करने वाले सैनिकों, अनुवादकों और ठेकेदारों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से काम नहीं करेगा।

काबुल में पसरा सन्नाटा

तलिबाैन के कब्जे के बाद राजधानी काबुल में वीरानी छाई हुई है। बाजार में सन्नाटा पसरा है, दुकानें और सरकारी प्रतिष्ठान बंद हैं। लोग डरे हुए हैं। सड़कों पर एके-47 और अन्य अत्याधुनिक हथियार लिए तालिबान के लड़ाके पहरा दे रहे हैं। लोगों को डर है कि अमेरिका समर्थित सरकार के दो दशक के शासन काल के दौरान जो आजादी और अधिकार उन्हें मिले थे, तालिबान के राज में वो सब खत्म हो जाएंगे।

यूएन को मानवाधिकार के लिए काम करने वाले अफगानियों की चिंता

अफगानिस्तान में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले सैकड़ों लोगों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेसलेट के प्रवक्ता रूपर्ट कालविल ने कहा कि हम विशेष रूप से उन हजारों अफगानों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, जो वहां मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे हैं।

ग्लोबमास्टर ने पाकिस्तानी वायु क्षेत्र का नहीं किया इस्तेमाल

काबुल से भारतीय राजदूत और दूतावास में काम करने वाले कर्मचारियों को वायु सेना के मालवाहक विमान ग्लोबमास्टर से वापस लाया गया। भारत से अफगानिस्तान जाने के लिए सबसे सीधा रूट पाकिस्तान होते हुए है, लेकिन वायु सेना का विमान होने के नाते ग्लोबमास्टर ने पाकिस्तानी वायु क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया। इसे खाड़ी क्षेत्र से ईरान होते हुए काबुल भेजा गया था और उसी रास्ते से वापस भी लौटा।

अफगान शरणार्थियों की मदद करें बाइडन: बुश

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने अफगान शरणार्थियों को मदद पहुंचाने के लिए बाइडन सरकार से आग्रह किया है। बुश के शासनकाल में ही 11 सितंबर 2001 को व‌र्ल्ड ट्रेड पर टावर पर हमला हुआ था। इसके बाद ही अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला करते हुए तालिबान को खदेड़ दिया था।

प्रभावित होगी अफगानियों को निकालने की योजना

आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा है कि उनकी सरकार काबुल से उतने अफगानियों को नहीं निकाल पाएगी, जितना वह चाहते थे। 130 से अधिक नागरिकों और उनके परिवारों को अफगानिस्तान से निकालने के लिए आस्ट्रेलिया 250 सैन्यकर्मियों के साथ तीन परिवहन और हवा से हवा में ईंधन भरने वाले जेट भेज रहा है। दरअसल, आस्ट्रेलिया उन अफगानियों को भी निकालना चाहता है, जिन्होंने उसके सैनिकों और राजनयिकों के लिए दुभाषिए की भूमिका अदा की है।