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विपत्ति पर जो काम आए, वही सच्चा भाई : साध्वी हंसकीर्ति

रायपुर: भाई और बहन के बीच स्नेह सच में है या नहीं, यह विपत्ति आने पर ही पता चलता है। हर हाल में जो अपनी बहन की सुरक्षा करे, वही सच्चा भाई है। यह संदेश विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञानवल्लभ उपाश्रय में साध्वी हंसकीर्ति ने रक्षाबंधन के मौके पर विशेष प्रवचन में दिया। साध्वीवर्या ने कहा कि रक्षाबंधन का पर्व सिर्फ बहनों की सुरक्षा नहीं, बल्कि समस्त जीवों की सुरक्षा के संकल्प का पर्व है। जैन धर्म में यह पर्व 700 संतों की सुरक्षा की याद में मनाया जाता है।

धर्मसभा में एक अन्य साध्वी रम्यकगुणा ने कहा कि लोगों को दिन में 10 बार बही-खाता खोलना पसंद है, लेकिन एक बार शास्त्र खोलकर पढ़ना उन्हें परेशानी लगता है। पैसों से आजीविका तो चल सकती है, लेकिन जीवन जीने के लिए ज्ञान का होना बहुत जरूरी है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो आधा-अधूरा ज्ञान रखकर खुद को पूर्ण ज्ञानी मान लेते हैं। ज्ञान प्रदर्शन का नहीं, अध्ययन का विषय है। आधा-अधूरा ज्ञान हमेशा खुद के लिए ही घातक साबित होता है।

वचन की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म : हेमंत मुनि

ज्ञानी की परिभाषा ज्ञान से नहीं, आचरण से होती है। तुम किसी का सम्मान नहीं कर सकते तो अपमान भी मत करो। द्वेषी व्यक्ति को उपदेश देने की जरूरत नहीं है। मुनि की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह देखता सब कुछ है, लेकिन बोलता कुछ नहीं। वचन की रक्षा करना ही सबसे बड़ा धर्म है। यह संदेश रक्षाबंधन के अवसर पर शैलेंद्र नगर मुकीम भवन में विराजे संत हेमंतमुनि और सौरभमुनि ने छोटापारा के सुराना भवन में दिया।

मुनिश्री ने कहा कि रक्षाबंधन पर्व का मूल संकल्प रक्षा करने का है। भारत में जनमानस को मुख्यतः: चार वर्णों में बांटा गया है। क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र। क्षत्रिय रक्षाबंधन पर अपने तलवार पर रक्षासूत्र बांधते हैं और समाज की रक्षा का संकल्प लेते हैं। ब्राह्मण अपने यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधते हैं और उन्हें सही धर्म देने का संकल्प लेते हैं। वैश्य अपने कलम सहित उपकरणों को रक्षा सूत्र बांधते हैं। वैश्य किसी से बेईमानी नहीं करने का संकल्प लेते हैं। शूद्र निष्काम भाव से लोगों की सेवा करने का संकल्प लेता है।