राजनीतिक कार्यक्रमों से कोरोनावायरस की दूरी, बाकी सब जगह होगा कड़ाई से पालन ?
भाटापारा। 2021 में भी ऐसे ऐसे निर्णय देखे जाते हैं, जिसे अचरज होता है कि हम आज भी वही पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं, जहां शासक अपने हिसाब से निर्णय लिया करते थे। धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों में कोरोनावायरस पर चील की नजर रखने वाला प्रशासन, राजनीतिक कार्यक्रमों में हाथ बांधे खड़े नजर आता है। धार्मिक आयोजन में कब मंदिर खुलेगी, कब बंद होगी, यात्रा कहां से निकलेगी कहां खत्म होगी, कितने लोग रहेंगे सब निर्णय प्रशासन बड़ी मुस्तैदी से करता है। शादी, विवाह ,मरने में भी प्रशासन बड़ी गंभीरता दिखाता है, समय आने पर लाठी भी चलाता है, जो कि अच्छा है, वह यह सब काम लोगों की सुरक्षा के लिए ही करता है, जिस वजह से पूरे भारत में उनका सम्मान भी हुआ। लेकिन सवाल तब खड़े होता है कि इन सब पाबंदियों के बावजूद अगर राजनीतिक कार्यक्रमों में प्रशासन हाथ में हाथ बांधे खड़े होकर तमाशा देखता है, तो फिर इन पाबंदियों का फायदा जनता को कैसे मिलेगा। दोनों कोरोना काल के समय राजनीतिक दलों द्वारा धरना प्रदर्शन, रैली ,यात्रा सभी प्रकार के आयोजन सैकड़ों हजारों की संख्या में इकट्ठा होकर किया गया और किया जा रहा है। क्या प्रशासन यह बताने का कष्ट करेगा कि किन नेताओं के नेतृत्व में आयोजन हुआ और कितनी एफईआर हुई। ऐसे कार्यक्रमों में तो प्रशासन उन्हें सुरक्षा देता नजर आता है। हाल फिलहाल में ही ले लो छत्तीसगढ़ में एयरपोर्ट में ऐसी भीड़ लगी रही जैसे मानो कुंभ का मेला चल रहा हो। गणेश, दुर्गा, राम सप्ताह, होली, दिवाली में पाबंदी लगाने वाला प्रशासन अगर राजनीतिक कार्यक्रमों में पाबंदी लगाए तो कोरोना पर जरूर काबू पाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट जो कि शासन-प्रशासन की देखरेख में हुआ ,प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों का धरना प्रदर्शन, आसाम चुनाव, उत्तर प्रदेश चुनाव से लौटे नेताओं का कोरोना टेस्ट अगर होता तो शायद छत्तीसगढ़ में कोरोना महामारी कम फैलती । आम लोग एवं धार्मिक लोगों पर शक्ति और डंडा बरसाने वाला प्रशासन अगर वाकई में इस महामारी से लड़ना चाहता है, तो अपनी पाबंदी और डंडे की दिशा हो परिवर्तित करें।