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भारत को अत्याधुनिक युद्धक विमान बनाने में मदद करेगा स्वीडन, राजदूत क्लास मोलीन के साथ खास बातचीत

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोवेन के बीच 05 मार्च, 2021 को हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन के बाद दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। खास तौर पर कारोबार और रक्षा क्षेत्र में स्वीडिश कंपनियां भारत को अपने पसंदीदा निवेश स्थल के तौर पर देख रही हैं। नई दिल्ली में स्वीडन के राजदूत क्लास मोलीन ने दोनों देशों के रिश्तों की मौजूदा और भावी दिशा के बारे में विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन से बात की-

सवाल- भारत और स्वीडन के मौजूदा रिश्ते को आप किस तरह से देखते हैं?

जवाब- हमारे द्विपक्षीय रिश्ते ऐतिहासिक तौर पर काफी मजबूत हैं। मूल तौर पर यह रिश्ता अभी तक कारोबार और निवेश के बलबूते फलता-फूलता रहा है। अगर पिछले एक दशक की बात करें तो स्वीडन की संभवत: सभी प्रमुख मैन्यूफैक्च¨रग कंपनियां भारत में काम करने लगी हैं। पुरानी ही नहीं, बल्कि नई किस्म की कंपनियां, स्टार्ट अप, टेक्नोलाजी आधारित कंपनियां, छोटी कंपनियां, सर्विस सेक्टर की कंपनियां भी भारत में निवेश कर रही हैं। ट्रू-कालर इस सहयोग का एक अच्छा उदाहरण है। लगातार शीर्ष स्तर पर विमर्श हो रहा है और एक दूसरे के देश की यात्रा भी हो रही है। रक्षा क्षेत्र में हम काफी लंबे समय से सहयोगी हैं, हम इसे बहुत आगे ले जाना चाहते हैं। दोनों देशों के शीर्ष नेता इस बारे में बात कर रहे हैं।

सवाल- हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोवेन के बीच लीडरशिप समिट हुई है, इसका दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों के संदर्भ में क्या महत्व है?

जवाब- मेरे ख्याल से पिछले हफ्ते हुई वर्चुअल बैठक को दोनों देशों के बेहद करीबी संबंधों के उदाहरण के दौर पर देखा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री लोवेन भारत यात्रा पर आए थे, उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में स्वीडन की यात्रा की थी। दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय रिश्तों को दिशा देने वाली संयुक्त कार्ययोजना की समीक्षा की है। यह योजना आठ प्रमुख क्षेत्रों में हमारे सहयोग को नई ऊंचाई पर ले जाने का रोडमैप है। इसमें इनोवेशन, ट्रेड व इंवेस्टमेंट, डिफेंस, हेल्थ, स्मार्ट सिटीज जैसे कई क्षेत्र हैं जहां दोनों देशों के बीच भावी सहयोग को चिन्हित किया गया है।

सवाल- हेल्थ सेक्टर में सहयोग का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन में अपने भाषण में किया था, यहां हम कैसे आगे बढ़ेंगे?

जवाब- दोनों नेताओं के बीच जोधपुर (राजस्थान) में निर्मित एम्स का जिक्र हुआ था जिसे एक नए हेल्थ हब के तौर पर विकसित किया जा सकता है और स्वीडन इसमें सहयोग कर सकता है। हम खास तौर पर आयुष्मान भारत के तहत जो डाटा जुटाया जा रहे है उसको लेकर काफी उत्सुक हैं। यह डाटा हेल्थ सेक्टर में शोध करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। यह कुछ बीमारियों के सटीक इलाज में सहायक साबित हो सकता है।

सवाल- रक्षा क्षेत्र में स्वीडन भारत का पुराना सहयोगी है, इस सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए हम और क्या कर रहे हैं?

जवाब- स्वीडन और भारत के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग का पुराना समझौता है। इसके तहत ही हम अपने रक्षा सहयोग का विस्तार करने पर बात कर रहे हैं। स्वीडिश कंपनी साब अपने फाइटर जेट विमान ग्रिपेन का भारत में उत्पादन करना चाहती है और इस बारे में शिखर बैठक में चर्चा भी हुई थी। स्वीडन सरकार साब कंपनी के इस प्रस्ताव का पूरा समर्थन करती है। हमें साब के प्रस्ताव के उस हिस्से को भी देखना चाहिए जिसमें उसने भारत को तकनीक ट्रांसफर करने की बात कही है, यह काफी महत्वपूर्ण है। इसका निर्माण मेक इन इंडिया के तहत यहां किया जाएगा, इसको लेकर कोई शंका नहीं है। यह एक ऐसी साझेदारी होगी जो भारत को आगे चलकर पूरी तरह से अपना अत्याधुनिक (लेटेस्ट जेनेरेशन) फाइटर जेट बनाने के लिए तैयार करेगी। हालांकि इस बारे में अंतिम फैसला रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायुसेना को करना है। हम उनके फैसले का इंतजार कर रहे हैं। स्वीडन की दूसरी हथियार निर्माता कंपनियां भी भारत को लेकर काफी आकर्षित हैं और उनकी बातचीत चल रही है।

सवाल- हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर नए तरह का वैश्विक गठबंधन उभर रहा है, स्वीडन कैसे देखता है?

जवाब- देखिए, स्वीडन यूरोपीय संघ का हिस्सा है और हमारी एक कामन विदेश नीति है। हालांकि स्वीडन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में काफी समय से व्यापार कर रहा है। स्वीडन की कंपनियां इस क्षेत्र के तकरीबन हर देश के साथ कारोबार कर रही हैं और निवेश कर रही हैं। हमारी प्रमुख चिंता शांति व सुरक्षा को लेकर है। हम चाहते हैं कि अभी इस क्षेत्र में संचार, ट्रेड, कामर्स की जो व्यवस्था है वह जारी रहे। इस व्यवस्था में किसी तरह का बदलाव ठीक नहीं होगा। हम नियम आधारित और सभी के लिए समान अवसर वाली व्यवस्था चाहते हैं। हम इस बारे में यूरोपीय संघ की नीति के तहत ही आगे बढ़ेंगे, लेकिन अगर मौजूदा कानून सम्मत व्यवस्था में बदलाव करने की कोशिश की जाती है तो यह हमारे लिए भी चिंता की बात है।