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मालवा प्रांत के साहित्यकार निभा रहे अपना साहित्य धर्म

इंदौर। आज देश को देश के लिए जीने वाले कवियों की आवश्यकता है जो अपने लेखन से जनचेतना लाएं। साहित्य की प्रत्येक विधा में लेखन कार्य कर साहित्य रूपी देवता को पुष्ट बनाने की आवश्यकता है। यह बात मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने आनलाइन कवि सम्मेलन में कही।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत द्वारा शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के प्रधानमंत्री सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी थे। सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने कहा कि वर्तमान में कविता साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। इस लिहाज से दोनों का फलना-फूलना जरूरी है। मालवा प्रांत के अध्यक्ष त्रिपुरारीलाल शर्मा ने स्वागत भाषण में कहा कि मालवा प्रांत के साहित्यकार अपना साहित्य धर्म निभा रहे हैं। साहित्यकार कविता के माध्यम से सामाजिक सुधारों के लिए जनजागरण का कार्य कर रहे हैं।
आनलाइन हुए इस आयोजन में देश के 21 साहित्यकारों ने शिक्षक, हिंदी, नारी, देशभक्ति, मां, पर्यावरण, प्रेम, विरह आदि विषयों पर कविताएं व गजलें पेश कीं। सरस्वती वंदना से शुरू हुए आयोजन में टोंक खुर्द के सुरेंद्र सिंह सेंधव ने मां सरस्वती की आराधना की। बड़वानी के सुनील पुरोहित दरख्त शीर्षक लिए कविता सुनाते हुए हरियाली बचाने का संदेश दिया। बृजेश पटवारी ने आज के संदर्भ में कृष्ण होते अगर राम होते अगर रचना सुनाकर तालियां बटोरी। रश्मि शीतल झंवर ने काव्य पाठ “जानती हूं हे ईश्वर कि अभी तुम मुझसे रूठा है’ सुनाकर दाद बटोरी।
दिलीप कुमार शर्मा ने राष्ट्र निर्माण गीत “जिंदगी के राहों में रुको नहीं बढ़े चलो’ सुनाया तो राजभंवर सिंह सेंधव ने “मां’ शीर्षक लिए कविता सुनाई जिसमें मां को स्वर्ग से महान होने का चित्रण किया हुआ था। स्मिता माहेश्वरी ने नारी के वर्तमान स्वरूप को कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया तो सिद्धेश्वरी सराफ ने भगवान कृष्ण पर अपना काव्य प्रस्तुत किया। पुष्पलता पुष्प ने राखी के रंग खुशी के संग काव्य गीत के माध्यम से राखी के महत्व को बताया। आयोजन में नंद किशोर राठौड़, ओमप्रकाश कुशवाहा, कविता परमार, शोभा रानी तिवारी, चंदा देवी स्वर्णकार, शांभवी अवस्थी आदि ने रचना पाठ किया। काव्य गोष्ठी का संचालन दिलीप कुमार शर्मा, बृजेश पटवारी व हर्षा शर्मा ने किया। आभार त्रिपुरारीलाल शर्मा ने माना।