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हर्पीस वायरस ने 24 घंटे के भीतर हाथी के दो बच्चों की ले ली जान

अंबिकापुर। सूरजपुर जिले के रमकोला स्थित हाथी पुनर्वास केंद्र में पल रहे दूसरे हाथी के बच्चे ‘रेवा’ की भी मौत हो गई। लक्षण के आधार पर हाथी के दोनों बच्चों की मौत की वजह पशु चिकित्सकों ने हर्पीस वायरस (ईईएचवी-1) को बताया है। हाथी के दोनों बच्चे कर्नाटक से लाए गए प्रशिक्षित कुमकी हथनियों के थे। 24 घंटे के भीतर इनकी मौत से वन अधिकारी भी सकते में है। हाथी के दोनों बच्चों के मृत शरीर का पोस्टमार्टम तीन सदस्यीय पशु चिकित्सकों की टीम से कराया गया है। शेष हाथियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। सभी को अलग-अलग रखा गया है।

कर्नाटक से लाए गए पांच प्रशिक्षित कुमकी हाथियों में दो हथनियों ने बच्चे को जन्म दिया था। इनकी आयु लगभग 21 माह की हो चुकी थी। कुमकी हाथी योगलक्ष्मी के बच्चे ‘लक्ष्मणा’ की मौत गुरुवार दोपहर लगभग दो बजे हुई थी। अचानक उसने दम तोड़ दिया था। उसकी मौत के बाद ही एलीफैंट प्रोजेक्ट सरगुजा के अधिकारी, कर्मचारी सतर्क हो गए थे। लक्ष्मणा की मौत को लेकर संभावना जताई जा रही थी कि हर्पीस वायरस का संक्रमण होगा। तेजी से फैलने वाले वायरस की वजह से ही अधिकारियों ने सुरक्षा के इंतजाम शुरू कर दिए थे।’रेवा’ हाथी हमउम्र था। दोनों की दोस्ती थी। दोनों साथ में ही रहा करते थे। लक्ष्मणा की मौत के बाद रेवा को सुरक्षित तरीके से सभी हाथियों से दूर बांध कर रखा गया था। पशु चिकित्सक एंटीवायरल दवाइयों को देने में लग गए थे। गुरुवार को शाम हो जाने के कारण उसका पोस्टमार्टम नहीं हो सका था। शुक्रवार सुबह वरिष्ठ पशु चिकित्सक डा. महेंद्र पांडेय, डा. एमपी पैकरा, डा. एसएन पटेल की टीम पुनर्वास केंद्र में हाथी के बच्चे का पोस्टमार्टम करने पहुंचे थे। वन्यप्राणी वन्य संरक्षक किनो, उप निदेशक एलिफैंट प्रोजेक्ट सरगुजा प्रभाकर खलखो के साथ वन अधिकारी, कर्मचारियों की मदद से हाथी के बच्चे का पोस्टमार्टम किया जा रहा था। उसी दौरान दूसरे हाथी के बच्चे रेवा की तबियत बिगड़ने की जानकारी मिली। इसके पहले की पशु चिकित्सक कुछ समझ पाते हाथी का बच्चा उठ-बैठ करने लगा। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। अचानक वह बेहोश हुआ और थोड़ी ही देर में उसकी भी मौत हो गई। 24 घण्टे के भीतर हाथी के दो बच्चों की मौत से उनकी देखभाल में लगे महावत, चारा कटर और दूसरे कर्मचारी मायूस हो गए। मृत हाथी के बच्चे रेवा का भी इन्हीं पशु चिकित्सकों की टीम ने पोस्टमार्टम किया। दोनों में बीमारी के लक्षण एक जैसे थे। हाथी पुनर्वास केंद्र के बाहर सुरक्षित तरीके से दोनों बच्चों के शव को दफना दिया गया है। पोस्टमार्टम के दौरान पशु चिकित्सक और वन अधिकारी, कर्मचारियों ने भी सुरक्षा उपायों का पालन किया। हाथ में ग्लब्स, पैर में गमबूट, मास्क, किट पहन कर सारी प्रक्रिया पूरी की गई। जिस हरपीज वायरस से हाथी के बच्चों की मौत की संभावना जताई गई उसका इंसानों में संक्रमण का अभी तक कोई इतिहास नहीं होने का दावा पशु चिकित्सकों ने किया है लेकिन दो से दस वर्ष के वन्य जीवों में इसका असर बड़ी तेजी से होता है।

तेज बुखार और शरीर में जगह-जगह सूजन-

पशु चिकित्सकों ने हाथी के बच्चों की मौत की वजह लक्षण के आधार पर हरपीज वायरस संक्रमण को बताया है। दोनों बच्चे को तेज बुखार था। उनके सिर, आंख, पेट के नीचे सहित शरीर के दूसरे अंगों में जगह-जगह सूजन भी था। मौत से पहले बुखार इतना तेज था कि दोनों हाथी के बच्चे लगातार कांप रहे थे। इसे हायपोथरमिया के नाम से जाना जाता है। आंतरिक रूप से भी दोनों के लक्षण एक समान पाए गए थे।

मउ और इज्जतनगर भेजा गया सैंपल-

लक्षण के आधार पर पशु चिकित्सकों ने हर्पीस वायरस (ईईएचवी-1) से मौत की संभावना जताई है और उसकी पुष्टि के लिए अंगों को इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट इज्जतनगर और वेटनरी कालेज मउ भेजा जा रहा है। पशु चिकित्सक डा. महेंद्र पांडेय ने बताया कि हार्ट, लिवर, स्प्लीन, किडनी, ब्रेन, आंत, फेफड़ा के हिस्से कोल्डचेन मेंटेन करते हुए जांच के लिए भेजा जा रहा है। रिपोर्ट आने के बाद वायरस की अधिकृत रूप से पुष्टि हो जाएगी।

शेष सात हाथियों की चिंता, दी जा रही एंटी वायरल दवाएं-

हाथी पुनर्वास केंद्र में हाथी के दो बच्चों की मौत के बाद यहां सात वयस्क हाथी है। इनमें से पांच हाथी कर्नाटक से लाए गए प्रशिक्षित कुमकी हाथी है। शेष दो हाथी सिविल बहादुर और सोनू है। सोनू हाथी को अचानकमार टाइगर रिजर्व से लाया गया है। सिविल बहादुर को कुसमी क्षेत्र के सिविलदाग गांव से पकड़ा गया है। इन हाथियों की सुरक्षा के लिए समूचे पुनर्वास केंद्र को सैनिटाइजेशन कराया जा रहा है। सभी हाथियों को अलग-अलग दूर-दूर बांध कर रखा गया है। हाथियों को एंटी वायरल इंजेक्शन, एंटी वायरल टेबलेट, विटामिन सी, जिंक आदि की दवाएं दी जा रही है।

रेवतपुर में जन्मा इसलिए नाम रखा था रेवा-

हाथी के दोनों बच्चों का नामकरण की कहानी भी रोचक है। राजपुर क्षेत्र में जंगली हाथियों के बढ़े उत्पात को देखते हुए एडवांस प्रेग्नेंसी पीरियड में कर्नाटक से लाए गए दो हथनियों को कई किलोमीटर पैदल चलाकर ले जाया गया था। जंगली हाथियों के खिलाफ आपरेशन के पहले प्रशिक्षित हाथियों को रेवतपुर गांव में रखा गया था। यहीं एक हाथी के बच्चे का जन्म हुआ था। गांव के नाम के आधार पर इसका नामकरण रेवा किया गया था। उसी दौरान दूसरे गर्भवती हथनी को भी पुनर्वास केंद्र में शिफ्ट कर दिया गया था। यही योगलक्ष्मी हथिनी ने बच्चे को जन्म दिया था। प्यार से सभी उसे लक्ष्मणा नाम से पुकारते थे। रेवा और लक्ष्मणा की मौत ने पुनर्वास केंद्र के कर्मचारियों को गमगीन कर दिया है। वे समझ नहीं पा रहे है कि 24 घण्टे के पहले तक दोनों एक साथ घूमते-फिरते मौज मस्ती कर रहे थे और अचानक वे दोनों चले गए। दोनो बच्चे की मौत से उन्हें जन्म देने वाली हथनियों का व्यवहार भी बदल गया है।

नंदनकानन में दो वर्ष पूर्व हुई थी पांच हाथियों की मौत-

एलीफैंट एंडोफिलोट्रोपिक हरपीज वायरस (ईईएचवी) दो वर्ष पूर्व नंदनकानन चिड़ियाघर में भी फैला था। स्थानीय वन अधिकारियों ने बताया कि वर्ष 2019 में इस वायरस संक्रमण से नंदनकानन में कम अवधि में पांच हाथियों की मौत हुई थी। दक्षिण के राज्यों में भी इस वायरस के संक्रमण से हाथियों की मौत हुई है।

क्या है हरपीज वायरस-

0 यह बीमारी आमतौर पर दो वर्ष से दस वर्ष तक के युवा हाथियों के लिए अधिक घातक है। ज्यादातर कैद में रहने वाले या जन्म लेने वाले हाथी के बच्चों में इसका संक्रमण तेजी से फैलता है।

0 वायरस संक्रमण से अत्यधिक आंतरिक रक्तस्राव भी होता है जो मृत्यु का कारण बनता है।

0 पशु चिकित्सकों ने बताया कि कुछ हाथियों में भूख कम लगना, नाक से पानी निकलना और सूजी हुई ग्रंथियां जैसे लक्षण दिखाई देते हैं यह सारे लक्षण मृत हाथी के बच्चों में देखने को मिला।

0 हरपीज वायरस बीमारी की अवधि कम होती है। मामला पुष्ट न हो तब भी एन्टी वायरल इलाज होता है। यही वजह है कि यहां शेष हाथियों को भी एंटी वायरल दवाई दी जा रही है।

इसलिए ज्यादा हो रही चिंता-

जिस इलाके में हाथी पुननर्वास केंद्र स्थापित किया गया है वहां से नजदीक में ही तमोर पिंगला अभयारण्य क्षेत्र है। जहां वर्ष भर जंगली हाथियों की मौजूदगी होती है। यदि जंगल में हाथी इस वायरस से ग्रसित हो जाते हैं, तो उपचार करना अत्यंत कठिन होगा। इसलिए पुर्नवास केंद्र परिसर और उससे लगे जंगल मे भी दवाइयों का छिड़काव किया जा रहा है। अंचल के प्रत्येक हाथी को ट्रैक करना और परीक्षण करना बेहद कठिन होगा कि क्या वे इस वायरस से ग्रसित हैं या नहीं।

वन्य जीव चिकित्सक तो दूर पशु चिकित्सक भी नहीं-

हाथी पुनर्वास केंद्र में दोनों बच्चों की मौत से पहले कुल नौ हाथी थे लेकिन उनकी जांच और उपचार के लिए वन्य जीव चिकित्सक तो दूर पशु चिकित्सक भी नहीं थे। वन विभाग पशुपालन विभाग पर आश्रित था। जब हाथियों की किसी प्रकार की बीमारी होती थी तो प्रतापपुर या रेवटी से पशु चिकित्सकों को बुलाया जाता था। कुछ वर्ष पहले यहां दो पशु चिकित्सकों को पदस्थ किया गया था। उनकी नियुक्ति संविदा आधार पर की गई थी। नियमित नौकरी के कारण वे यहां से छोड़कर चले गए।

बयान-

हाथी के बच्चों की मौत 24 घंटे के भीतर हुई है। लक्षण के आधार पर हम ये कह सकते हैं कि हरपीज वायरस संक्रमण से मौत हुई है। ऊपरी तौर पर शरीर में जगह-जगह सूजन पाए गए। आंतरिक अंगों में रक्तस्राव हुआ था। लीवर, किडनी ने काम करना बंद कर दिया था। फेफड़े में पानी और मस्तिष्क में रक्त जमाव पाया गया है।

डा. महेंद्र पांडेय

वरिष्ठ पशु चिकित्सक, सूरजपुर

बयान-

दोनों हाथी के बच्चों की मौत एक ही बीमारी के लक्षण से हुई है। भीतरी अंगों में हेमरेज हुआ था। चिकित्सकों की सलाह पर सभी हाथियों को अलग-अलग रखा गया है। सैनिटाइजेशन कराया जा रहा है। लैब में जांच के बाद ही मौत की वजह स्पष्ट हो सकेगी।

केनी मेचियो

फील्ड डायरेक्टर, एलीफैंट प्रोजेक्ट सरगुजा