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पाकिस्तान है अफगानिस्तान में समस्या की असली जड़, आइएसआइ बना कट्टरपंथ का केंद्र

इस्लामाबाद। अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। तालिबान को मदद पहुंचाने से लेकर अफगानिस्तान की नई सरकार में हक्कनी नेटवर्क की वकालत करने तक पाकिस्तान पूरी तरह से सक्रिय रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अफगानिस्तान में समस्या की असली जड़ पाकिस्तान ही है। यूरोपियन फाउंडेशन फार साउथ एशियन स्टडीज (EFSAS) के विशेषज्ञों के अनुसार, तालिबान के पक्ष में पाकिस्तान की दिलचस्पी दुनिया से छिपी नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल ही में एक साक्षात्कार में तालिबान को वैश्विक मान्यता देने की अपील की थी। वहीं, पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में तालिबान राज को मान्यता देने की वकालत कर चुके हैं।

इस बीच, चीन ने तालिबान के खिलाफ प्रतिबंध हटाने का आह्वान किया। उसने अमेरिका से अनुरोध किया कि वह युद्धग्रस्त देश के रोके गए विदेशी मुद्रा भंडार को समूह पर राजनीतिक दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं करे। इएफएसएएस थिंक टैंक का कहना है कि पाकिस्तान कट्टरपंथी विचारधारा में गहराई से निवेश कर रहा है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि पाकिस्तानी परमाणु हथियार कट्टरपंथी इस्लामवादियों के हाथों में पहुंच जाए।

इसको लेकर अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) जान आर बोल्टन और इतालवी लेखक फ्रांसेस्का मैरिनो सहित विशेषज्ञों द्वारा कफी बहस की गई है। बोल्टन ने पाकिस्तान को आगजनी करने वालों और अग्निशामकों से मिलकर बनी एकमात्र सरकार के रूप में वर्णित किया है। इसमें कहा गया है कि इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आइएसआइ) लंबे समय से ‘कट्टरपंथ का केंद्र’ बना हुआ है, जो पूरी सेना में उच्च रैंक तक फैल गया है। जबकि, प्रधानमंत्री इमरान खान कई पूर्व निर्वाचित नेताओं की तरह सिर्फ एक चेहरा मात्र हैं।

बोल्टन ने अपने लेख में कहा है कि अमेरिकी गठबंधन बलों द्वारा 2001 में तालिबान को अफगानिस्तान से उखाड़ फेंकने के बाद आइएसआइ ने ही पाकिस्तान के अंदर उन्हें रहने के लिए जगह और हथियारों की आपूर्ति की। इसके साथ ही पाकिस्तान ने कश्मीर पर अपने मुख्य क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत को निशाना बनाने वाले आतंकवादी समूहों को भी सक्षम बनाया।

उन्होंने अफगानिस्तान को आतंकवाद का एक बड़ा छत्ता बनाने में इस्लामाबाद की भूमिका पर जोर देकर कहा कि समस्या की भयावहता इतनी ऊंचाई तक पहुंच गई है कि पश्चिम अब इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। यह संकेत देते हुए कि आतंकवाद के लिए पाकिस्तान के लगातार समर्थन ने इसे एक वास्तविक आतंकवादी राज्य बना दिया है। उसने सुझाव दिया कि ऐसे देशों के हाथों में परमाणु हथियारों होने का परिणाम किसी भी युद्ध से कहीं अधिक भयावह होंगे।