अचानकमार छोड़ने से पहले चीतलों का ब्लड सैंपल, स्वस्थ्य ही भेजे जाएंगे
बिलासपुर। कानन पेंडारी जू के चीतलों को अचानकमार टाइगर रिजर्व में छोड़ने की कवायद तेज हो गई है। बोमा पद्धति से इनकी शिफ्टिंग होगी। शिफ्ट करने से पहले चीतलों का ब्लड सैंपल लिया जा रहा है। जांच में कोई बीमार निकलता है तो उसे जंगल नहीं में नहीं छोड़ा जाएगा। केवल स्वस्थ्य चीतलों को टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाएगा। वन्य प्राणियों में इस प्रजाति की सबसे तेजी से संख्या बढ़ती है। इसी का नतीजा है कि वर्तमान में कानन पेंडारी जू 200 से अधिक चीतल हो गए हैं।
जबकि केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण का नियम है कि किसी भी जू 50 से अधिक चीतल नहीं होने चाहिए। इस लिहाज से जू प्रबंधन को पहले ही शिफ्टिंग कर लेनी थी। लेकिन विभागीय अड़चना व बजट की कमी के चलते करीब तीन साल से चीतलों की शिफ्टिंग योजना अटकी हुई है। पर अब बहुत इन्हें छोड़ने का काम किया जाएगा। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने इसके लिए अनुमति दे दी है। विभाग का यह मानना है कि चीतलों की संख्या बढ़ने से बाघ भी बढ़ेंगे। उन्हें आहार मिलेगा।
इसके साथ जू में भी संख्या कम होने से आहार में आने वाला खर्च भी कटौती होगी। इसे देखते हुए अतिशीघ्र शिफ्टिंग करने की तैयारी है। नियमानुसार स्वस्थ्य चीतलों को जंगल में छोड़ना है। यदि बीमार या संक्रमित चीतल जंगल पहुंचते हैं तो इससे नुकसान भी हो सकता है। इसे देखते हुए ब्लड सैंपल लिया जा रहा है। जू स्थित अस्पताल में ही ब्लड की जांच कर यह देखा जाएगा कि चीतल बीमार तो नहीं है। जिन चीतलों को ब्लड सैंपल लिया जा रहा है, उन्हें झुंड से अलग भी कर दिया गया है।
ताकि शिफ्टिंग के समय किसी तरह की परेशानी न हो। शिफ्टिंग के लिए बोमा पद्धति अपनाई जाएगी। इस पद्धति की खासियत यह है कि चीतलों को बेहोश नहीं करना पड़ता। चाढ़ीनुमा एक गलियारा बनाया जाता है। जिसमें दाने को छिड़क देते हैं। इसे खाने की लालच में चीतला आते हैं। एक छोर में वाहन को खड़ा कर देते हैं। जैसे वह वाहन के अंदर चीतल पहुंचता है। लगाए गए गेट को बंद कर देते हैं। जू प्रबंधन एक बार और यह पद्धति अपना चुका है।