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त्रिकोणीय मुकाबले में फंसती दिख रहीं बंगाल की 100 से ज्यादा मुस्लिम बहुल सीटें

कोलकाता।  ऐसा माना जाता है कि बंगाल में सत्ता की चाबी मुस्लिम वोटरों के हाथ में है, जो पिछले एक दशक से ज्यादा समय से ममता बनर्जी का साथ देते रहे हैं। राज्य में करीब 30 फीसद मुस्लिम आबादी है और इस वर्ग का 100 से 125 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है, जहां वे जीत-हार तय करते हैं। इनमें से करीब 90 सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की थीं।

लेकिन इस बार भाजपा व तृणमूल के साथ मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने और मुस्लिम वोटरों को वापस अपने साथ लाने के लिए वाममोर्चा और कांग्रेस ने फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा और प्रमुख मुस्लिम धाíमक नेता अब्बास सिद्दीकी द्वारा नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) जैसे कट्टरपंथी दल के साथ गठजोड़ किया है, जिसके बाद समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। दूसरी ओर, हैदराबाद से सांसद व एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की नजर भी बंगाल में मुस्लिम वोटों पर है। वह भी 10 से 20 मुस्लिम बहुल सीटों पर प्रत्याशी उतारने की तैयारी में है। ऐसे में इस बार मुस्लिम बहुल सीटें त्रिकोणीय मुकाबले में फंसती नजर आ रही है।

इसके पीछे इस बार मुस्लिम मतदाताओं की चुप्पी बड़ी वजह है, जिसने राजनीतिक दलों की चिंताएं बढ़ा दी है। वहीं, भाजपा से कड़ी टक्कर मिलने से परेशान व चुनाव से पहले पार्टी में भगदड़ का सामना कर रही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम मतदाताओं की चुप्पी को लेकर सबसे ज्यादा परेशान हैं। खासकर इसबार के चुनाव में आइएसएफ की एंट्री से दीदी को मुस्लिम वोट बंटने का सबसे ज्यादा डर सता रहा है। यह इस बात से समझा जा सकता है कि ममता लगातार वाममोर्चा व कांग्रेस गठबंधन पर निशाना साध रहीं हैं। वहीं, आइएसएफ के प्रमुख अब्बास सिद्दीकी से वह इतनी खफा हैं कि वह उनका नाम तक नहीं लेना चाह रही हैं। हाल में पत्रकारों द्वारा सिद्दीकी का नाम लेते ही ममता आग बबूला हो गईं। ऐसे में मुस्लिम मतदाता यदि बंटते हैं तो इसबार तृणमूल के लिए राह आसान नहीं हैं।

त्रिकोणीय मुकाबले से भाजपा को होगा सीधा फायदा

दूसरी ओर, वाम-कांग्रेस व आइएसएफ गठबंधन, तृणमूल कांग्रेस एवं ओवैसी की पार्टी के बीच यदि मुस्लिम वोट बंटता है तो भाजपा को इसका सीधा फायदा हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद से बंगाल फतह का ख्वाब देख रही भाजपा को लग रहा है कि त्रिकोणीय मुकाबले से उसे फायदा होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में यह साबित भी हुआ था। मालदा जैसे मुस्लिम बहुल जिले में भाजपा, मुस्लिम वोटों के बंटने से एक लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रहीं थीं जबकि एक अन्य सीट पर महज कुछ हजार के अंतर से भाजपा प्रत्याशी जीत से चूक गए थे। इसके अलावा मुस्लिम बहुत उत्तर दिनाजपुर जिले की रायगंज लोकसभा सीट भी भाजपा पहली बार जीतने में कामयाब रहीं। इसके अलावा हाल के दिनों में तृणमूल व अन्य दलों से बड़ी संख्या में मुस्लिम नेता व कार्यकर्ता भी भाजपा के साथ जुड़े हैं। जागरूक मुस्लिम मतदाता इस बार बदलाव की बात कह रहे हैं।

पीरजादा का 12 से 15 लाख मुस्लिम परिवारों पर है प्रभाव

जहां तक फुरफुरा शरीफ के पीरजादा की बात है तो 12 से 15 लाख बांग्लाभाषी मुस्लिम परिवारों पर इनका प्रभाव माना जाता है। अब्बास सिद्दीकी के प्रति खासकर मुस्लिम युवाओं का रूझान अधिक है, जो तृणमूल के लिए चिंता का सबब है।

बंगाल में मुस्लिम वोटों का ग्राफ

बंगाल में कुल 294 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें से 46 में मुस्लिमों की संख्या 50 फीसद से अधिक है। 16 सीटें ऐसी हैं, जहां मुसलमानों की आबादी 40 फीसद से अधिक, 33 सीटों पर 30 फीसद से अधिक और 50 सीटों पर 25 फीसद से अधिक हैं। उत्तर व दक्षिण 24 परगना, मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर, नदिया और बीरभूम जिलों में मुस्लिम वोटों को ध्यान में रखकर ही उम्मीदवार तय किए जाते रहे हैं।