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टीकाकरण की सुस्त रफ्तार: टीकाकरण में आयु सीमा की बंदिश को खत्म किया जाए तभी रफ्तार बढ़ाई जा सकती है

कुछ अंतराल के उपरांत कोरोना वायरस के संक्रमण ने फिर गति पकड़ ली है। चूंकि पिछले दो माह में संक्रमण के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई और प्रतिदिन संक्रमित होने वालों की संख्या दस हजार के करीब पहुंच गई, इस कारण हर तबके के लोगो में कोरोना का भय खत्म हो गया और वे बिना सावधानी भीड़ भरी जगहों पर आने-जाने लगे। नतीजा यह हुआ कि संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ने लगे। अब प्रतिदिन संक्रमित होने वालों की संख्या 40 हजार के आंकड़े को पार कर गई है। सबसे अधिक मामले महाराष्ट्र्र, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात और छत्तीसगढ़ में देखने को मिल रहे हैं। इन पांच राज्यों में कुल मामलों के 80 प्रतिशत मामले मिलने से यही पता चलता है कि हालात बेकाबू हो रहे हैं। महाराष्ट्र में तो कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर स्पष्ट दिख रही है।

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते पीएम मोदी ने राज्यों को किया सक्रिय

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते ही पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर यह अपील की कि राज्य सरकारें संक्रमण रोकने के लिए सक्रिय हों। इस अपील का कोई खास असर नहीं दिख रहा है। जो राज्य चुनौती बने हुए हैं, वहां कोरोना के उतने टेस्ट नहीं हो रहे हैं, जितने होने चाहिए। चिंता की बात यह है कि राज्य सरकारों के साथ-साथ आम लोग भी कोरोना संक्रमण से बचे रहने के लिए आवश्यक सतर्कता का परिचय नहीं दे रहे हैं। सार्वजनिक स्थलों में न तो शारीरिक दूरी को लेकर सावधानी दिखाई जा रही है और न ही मास्क का समुचित इस्तेमाल करने में। यह तब है, जब प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर कहा है कि कोरोना से लड़ाई में जो आत्मविश्वास मिला, वह लापरवाही में नहीं तब्दील होना चाहिए। उन्होंने छोटे शहरों में टेस्टिंग बढ़ाने पर भी जोर दिया, ताकि संक्रमण गांवों तक न फैलने पाए। अगर संक्रमण गांवों तक पहुंच गया तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी।

लोगों को वैसी ही सावधानी बरतनी चाहिए, जैसी लॉकडाउन के समय बरती गई

राज्य सरकारों के साथ आम लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यूरोप और अमेरिका में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर पहली जितनी ही घातक थी। हालांकि भारत में अमेरिका और यूरोप की तुलना में कम लोग संक्रमित हो रहे और मरने वालों की संख्या भी कम है, लेकिन इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि इन देशों के मुकाबले खतरा कम है। भारत में रहन-सहन की जैसी स्थितियां हैं, उनके कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो सकती है, लेकिन इसकी अनदेखी न की जाए कि अब तक डेढ़ लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। यह कम संख्या नहीं है। इस तरह के शोध पर ज्यादा यकीन नहीं किया जाना चाहिए कि दक्षिण एशिया के लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है, क्योंकि कोरोना वायरस अपने रूप बदल रहा है। उसके कुछ रूप कहीं अधिक घातक हो सकते हैं। भारत में कोरोना वायरस के ऐसे कई बदले हुए रूप मिल चुके हैं, जो ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका आदि में उपजे। हालांकि अभी तक यह माना जा रहा है कि कोरोना के जो भी बदले रूप हैं, उन पर भारत में बनी वैक्सीन कारगर है, लेकिन आने वाले समय में इस वायरस के ऐसे रूप भी सामने आ सकते हैं, जिन पर ये वैक्सीन कारगर न हों। इन हालात में लोगों को वैसी ही सावधानी बरतनी चाहिए, जैसी लॉकडाउन के समय बरती गई।

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते देश के कई शहरों में लगा रात का कर्फ्यू

कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के चलते देश के कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगाया गया है। यह कोई बहुत कारगर उपाय नहीं है। रात के समय वैसे ही भीड़ कम होती है और यह मानना सही नहीं कि शहरों में लोग रात को पार्टी करने निकल पड़ते हैं। ऐसा करने वाले चंद लोग ही होते हैं। बेहतर हो कि राज्य सरकारें रात का कर्फ्यू लगाने जैसे कदम उठाने के बजाय उन कारणों का निवारण करें, जिनके चलते कोरोना संक्रमण रफ्तार पकड़ रहा है

यदि फिर से लॉकडाउन लगाने की नौबत आई तो पटरी पर आती अर्थव्यवस्था फिर पटरी से उतर सकती

यदि कोरोना के बढ़ते संक्रमण के चलते फिर से लॉकडाउन लगाने की नौबत आई, जैसा कि कुछ राज्य सरकारें चेतावनी दे रही हैं तो पटरी पर आती अर्थव्यवस्था फिर पटरी से उतर सकती है। हालात को देखते हुए लोगों को एहतियात बरतते हुए रोजमर्रा का जीवन संचालित करना होगा, ताकि कामकाज न रुके और अर्थव्यवस्था भी पटरी पर चलती रहे। राज्य सरकारों को चाहिए कि वह लोगों को सावधानी बरतने के लिए चेताए और साथ ही इस महामारी को नियंत्रित करने में जुटे सरकारी अमले की चौकसी बढ़ाए। यह इस अमले की जिम्मेदारी है कि वह पहली जैसी सक्रियता से महामारी को सिर उठाने से रोके।

भारत में कोरोना से लड़ने की क्षमता है, दूसरे देशों को वैक्सीन दे रहा और अपने लोगों का टीकाकरण

इस अमले को इसलिए उत्साहित होना चाहिए, क्योंकि हमारे वैज्ञानिकों ने विश्व को यह दिखा दिया है कि भारत में कोरोना से लड़ने की क्षमता है। आज भारत में बनी दोनों वैक्सीन-कोवैक्सीन और कोविशील्ड की दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है। भारत न केवल दूसरे देशों को वैक्सीन दे रहा है, बल्कि अपने लोगों का टीकाकरण भी कर रहा है।

टीकाकरण में सुस्ती स्वीकार्य नहीं: कई राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार बहुत धीमी

भारत में अभी तक करीब चार करोड़ लोगों को कोविड रोधी टीका लगाया जा चुका है, लेकिन महामारी को नियंत्रित करने और इसके फैलाव को रोकने के लिए अभी बड़ी संख्या में लोगों का टीकाकरण करना होगा। टीकाकरण में सुस्ती स्वीकार्य नहीं। यह ढिलाई का ही प्रमाण है कि केंद्र की ओर से राज्यों को पर्याप्त संख्या में टीके भेजने के बाद भी वहां अपेक्षित संख्या में टीके नहीं लग पा रहे हैं। जब यह मांग तेज हो रही है कि हर आयु वर्ग के लोगों को टीका लगवाने की छूट दी जाए, तब यह ठीक नहीं कि कई राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार बहुत धीमी है। ऐसी शिकायतें मिल रही हैं कि टीका लगवाने गए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है या फिर तय संख्या में लोगों के न पहुंचने के कारण टीके खराब हो जा रहे हैं।

टीकाकरण में आयु सीमा की बंदिश को खत्म किया जाए तभी रफ्तार बढ़ाई जा सकती है

इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जब करोड़ों लोग टीके के इंतजार में हैं, तब वे कारगर रणनीति के अभाव में खराब हो जाएं। कुछ राज्यों में तो टीकों के खराब होने की दर राष्ट्रीय औसत 6.5 प्रतिशत से भी अधिक है। इसी तरह टीकों के उपयोग की दर भी 30-35 प्रतिशत ही है। इसका सीधा मतलब है कि कहीं अधिक संख्या में लोगों को टीके लगाए जा सकते हैं। यह ठीक है कि जल्द ही कुछ और टीके आने वाले हैं, लेकिन बात तब बनेगी, जब टीकाकरण में आयु सीमा की बंदिश को खत्म किया जाए। इससे ही टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है।