कोरोना मरीजों की सेवा करते खुद संक्रमित हुए, महामारी को हराकर 20 वें दिन ड्यूटी पर पहुँचे, राजेंद्र दिखा रहे सेवा का जज्बा
जबलपुर। कोरोना संक्रमित मरीजों को दी जाने वाली सुविधाओं पर पैनी नजर रखने वाले प्रभारी हवलदार राजेंद्र कुमार कनौजिया खुद भी महामारी की चपेट में आ गए थे। होम आइसोलेशन में रहकर उन्होंने कोरोना महामारी को हराया और 20वें दिन दोबारा ड्यूटी पर उपस्थित हो गए। वे अब भी मरीजों की सुविधा के लिए कोविड.19 वार्डों में बेखौफ होकर घुस जाते हैं। मरीज को दी जा रही ऑक्सीजन का फ्लो मीटर खराब तो नहीं हो गया, वेंटिलेटर की क्या स्थिति है, कर्मचारी ड्यूटी पर पहुंचे कि नहीं, साफ सफाई की क्या व्यवस्था है, वार्ड में चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों को संक्रमण से बचाने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं, जैसे तमाम मसलों को लेकर वे ड्यूटी समय में सक्रिय रहते हैं।
54 वर्षीय राजेंद्र का कहना है कि मां को देख लो या मेडिकल कॉलेज अस्पताल को। जैसे एक मां अपने बच्चे की सेवा और सुरक्षा करती है उसी तरह कोरोना महामारी में मेडिकल कॉलेज अस्पताल मरीजों के लिए मां बन गई है। यहां भर्ती हो रहे मरीजों की सेवा करना किसी धार्मिक स्थल की यात्रा अथवा किसी पुण्य सलिला नदी में स्नान करने के बराबर फलदाई होगा।
ड्यूटी के दौरान हुए थे कोरोना संक्रमित: प्रभारी हवलदार राजेंद्र कुमार सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के कोविड.19 वार्डों में लंबे समय से सेवाएं दे रहे हैं। अप्रैल के पहले सप्ताह में ही उनकी सेहत खराब होने लगी थी कोरोना के संभावित लक्षण सामने आने के बाद उन्होंने जांच कराई सैंपल की रिपोर्ट कोरोनावायरस पॉजिटिव आई राजेंद्र ने बताया कि पॉजिटिव रिपोर्ट सुनकर वह तनिक भी विचलित नहीं हुए उसी समय उन्होंने मन और पक्का कर लिया की महामारी से स्वस्थ होते ही सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती कोरोनावायरस ओं की मरीजों की और बेहतर ढंग से सेवा कर सकूंगा।
होम आइसोलेशन में मिल गई राहत: राजेंद्र कुमार ने कहा कि महामारी के दौर में मरीजों की सेवा का पुण्य उन्हें मिल रहा है। कोरोना से संक्रमित होने के बाद घर में रहकर उन्होंने इलाज करवाया। आठ अप्रैल को कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट आई थी, जिसके बाद 28 अप्रैल को वह दोबारा ड्यूटी पर पहुंच गए। इस बीच होम आइसोलेशन में रहते हुए कोरोना वायरस के संक्रमण से परिवार को बचाने का प्रयास किया। इस महामारी से बचने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है। कोई भी मरीज इच्छाशक्ति के बल पर महामारी को परास्त कर सकता है।