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प्रशांत किशोर के ‘संन्यास’ से कैप्टन अमरिंदर सिंह को झटका, 2022 में होना है पंजाब चुनाव

चंडीगढ़। वर्ष 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले हाई कोर्ट की ओर से कोटकपूरा गोली कांड की रिपोर्ट को खारिज किए जाने के बाद पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) को एक और झटका लगा है।कैप्टन के राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) ने अब किसी भी पार्टी के लिए रणनीति बनाने से ‘संन्यास’ ले लिया है।

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने के लिए पीके दो महीने पहले ही प्रधान सलाहकार बनाया था। पीके ने ऐसे समय में ‘संन्यास’ की घोषणा की जब पंजाब में कांग्रेस बेअदबी कांड को लेकर उलझन में फंसी हुई है, जबकि पीके ने पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चुनावी रणनीति बनाई थी।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी भारी बहुमत से जीती तो तमिलनाडु में पीके ने स्टालिन द्रविड के लिए काम किया था। 2017 में पीके ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए रणनीति तैयार की थी। जिसके बाद पंजाब में कांग्रेस का 10 साल का सत्ता का सूखा खत्म हुआ था। पीके की रणनीति का लोहा मानते हुए कैप्टन ने उन्हें एक मार्च को अपना प्रधान सलाहकार बनाया था। उन्हें कैबिनेट रैंक भी दिया गया था। इसके बाद पीके ने पंजाब में न सिर्फ अधिकारियों के साथ बैठकें कीं, बल्कि वह विधायकों से फीडबैक भी ले रहे थे

दो राज्यों में 100 फीसद रिजल्ट देने के बाद पीके ने अचानक संन्यास लेने की घोषणा से कांग्रेस खेमे में सन्नाटा छा गया है। अब यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या दो महीने की वर्किंग के बाद क्या पीके, कैप्टन के लिए 2022 की रणनीति तैयार करने के इच्छुक नहीं थे। क्योंकि 2017 में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी, घर-घर रोजगार, युवाओं को मोबाइल फोन, 2500 रुपये बेरोजगारी भत्ता, निजी बिजली कंपनियों से करार खत्म करने, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के दोषियों को सजा दिलवाने, ट्रांसपोर्ट माफिया व केबल माफिया खत्म करने जैसे वादे किए थे। यह वो वादे हैं जिसमें से कुछेक पर आंशिक तौर पर काम हुआ और शेष वादों पर काम नहीं हो पाया।

वहीं, कोटकपूरा गोली कांड की रिपोर्ट भी हाई कोर्ट ने खारिज कर दी। जिसके बाद से ही कांग्रेस में घमासान मचा हुआ है। नवजोत सिंह सिद्धू समेत कांग्रेस के विधायक ही सरकार को घेर रहे हैं। बेअदबी कांड भले ही 2015 में हुआ हो, लेकिन यह ऐसी घटना है जिसने 10 वर्ष से लगातार सत्ता में बनी हुई अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार को उखाड़ कर फेंक दिया था। ऐसे में कांग्रेस को पीके से खासी उम्मीदें थी। हालांकि पीके ने संन्यास के पीछे निजी कारण बताए हैं लेकिन इसे पंजाब में कैप्टन सरकार के लिए खासा बड़ा झटका माना जा रहा है।

विपक्ष के निशाने पर रहे हैं पीके

प्रशांत किशोर भले ही एक रुपये वेतन पर प्रधान सलाहकार बने थे, लेकिन वह शुरू से ही विपक्ष के निशाने पर थे। उनके सलाहकार बनने के बाद से ही शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी ने किसान कर्ज माफी, घर-घर रोजगार, बेरोजगारी भत्ते जैसे मुद्दों पर सवाल पूछने शुरू कर दिए थे। वहीं, यह सूचनाएं भी आईं कि पीके कांग्रेस के 30 विधायकों के टिकट कटवाने के इच्छुक हैं। इस पर कांग्रेस में खासा घमासान मचा था। बाद में मुख्यमंत्री को स्पष्ट करना पड़ा था कि पीके केवल सलाह दे सकते है। पार्टी के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।