मप्र हाईकोर्ट में एक साल में 23000 नए केस बढ़ गए, हर जज पर औसत 13 हजार से ज्यादा केसों का भार
भोपाल: पिछले एक साल में ही हाईकोर्ट पर 23 हजार केसों का बोझ बढ़ गयाराज्य सरकार की नीति है- कोई भी केस 3 साल से ज्यादा न चले, लेकिन कई केस 11 साल से पेंडिंगकेंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में दी जानकारी- मप्र में कुल 4.17 लाख केस पेंडिंगसिविल और क्रिमिनल केसों की पेंडेंसी को निपटाने की नीति मप्र में कारगर साबित नहीं हो पा रही है। राज्य सरकार की नीति है कि कोई भी पेंडिंग केस 3 साल से अधिक नहीं होना चाहिए, लेकिन मप्र में 11 साल पुराने केस तक लंबित हैं। इतना ही नहीं, पिछले एक साल में ही हाईकोर्ट पर 23 हजार केसों का बोझ बढ़ गया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में सभी राज्यों के केसों का ब्योरा दिया है, जिसमें मप्र में पेंडिंग केसों की संख्या 4 लाख 17 हजार निकली है। यह स्थिति तब मप्र में न्याय देने वाले जजों की संख्या बमुश्किल 32 है।यानी हर जज के पास 13 हजार से अधिक केस लंबित हैं। कोर्ट में इस महीने के शुरुआत में 4 लाख 17 हजार 288 मामले लंबित थे, जिनमें 260371 सिविल के और 156917 क्रिमिनल के। पिछले साल यह संख्या 3 लाख 94 हजार 220 थी, यानी एक साल में 23 हजार से ज्यादा मामले बढ़ गए। यह जानकारी राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने दी है। यह स्थिति तब है, जब लगातार कोर्ट में बढ़ रहे मामलों को कम करने के लिए राज्य सरकार ने मुकदमा नीति बनाई हुई है। मुकदमा नीति में साफ है कि सरकारी मुकदमों को कम किया जाए ताकि कोर्ट में विचाराधीन मामलों का निराकरण 15 वर्ष के घटाकर 3 वर्ष किया जा सके।मुकदमा नीति को लागू करने हर विभाग में करना का पहलराज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुकदमा नीति बनाना था और इस नीति के तहत विभागों में आंतरिक परिवाद समितियों का गठन करना था, ये समितियां प्रदेश के हर एक विभाग और विभागाध्यक्ष, कलेक्ट्रेट, तहसील और ब्लाक कार्यालय में गठित होना था। लेकिन सिर्फ सामान्य प्रशासन विभाग ने रस्म अदायगी के चलते समिति गठित कर दी लेकिन उसकी कोई बैठक नहीं हुई। अन्य विभागों और विभागाध्यक्ष कार्यालयों में तो इस समिति के गठन का नामोनिशान तक नहीं है। इन समितियों के गठन का उद्देश्य विभागीय स्तर पर कर्मचारियों की सेवा शर्तों से संंबंधित मामलों का निपटारा किया जाना था, जिससे कर्मचारी सरकार के खिलाफ हाईकोर्ट में न पहुचें और वहां मुकदमों की संख्या न बढ़े। सेवा शर्तों संबंधी मामलों में स्प्ष्टतौर पर कहा गया है कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा छोटे-मोटे मामलों के संंबंध में कर्मचारी के पक्ष में सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।तारीख पर तारीख… 11 साल से चल रहे पदोन्नति में आरक्षण के मामले में सुनवाई; अंतिम फैसला आना बाकीपदोन्नति में आरक्षण के मामले में हाईकोर्ट में 2011 में याचिका दायर हुई, 30 अप्रैल 2016 को पदोन्नति नियम 2002 में से रोस्टर के हिसाब से आरक्षण किए जाने को रद्द कर कर दिया और इस नियम से हुई नियुक्तियों को निरस्त करने के आदेश दिए। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सप्रीम कोर्ट में चली गई, उस दौरान कोर्ट ने जो लोग प्रमोशन पा गए हैं, उनके मामलों में अंतिम निर्णय आने तक यथास्थिति बनाए रखने को कहा। इस मामले में 17 अगस्त से सुनवाई होना है। इस तरह पदोन्नति में आरक्षण का मामला पिछले 11 सालों में विभिन्न न्यायालयों में है जिस पर अंतिम फैसला आना बाकी है।रफीक मसीह वर्सेस अन्य के मामले में स्पष्ट कहा गया है कि क्लास-3 और क्लास-4 के मामलों रिटायर होने से एक वर्ष ज्यादा हुआ हो तो वसूली न की जाए। यहां वसूली की जा रही है जो मामले कोर्ट में पहुंच रहे हैं उनमें वसूली रोकी जा रही है। अन्य में जारी है। मंत्रालय में 27 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का प्रमोशन बाबू में हो गया, उस दौरान उन्हें एक इंक्रीमेंट ज्यादा मिल गया। दस साल बाद उनसे वसूली की जा रही है।हाल ही में सीएम राइस स्कूल खोले गए हैं, जिनमें शिक्षकों की पोस्टिंग की जा रही है। करीब 500 से ज्यादा शिक्षक इस पदस्थापना के खिलाफ कोर्ट में पहुंच गए हैं। इसके साथ ही स्कूल शिक्षा विभाग के 19 हजार से ज्यादा मामले कोर्ट में चल रहे हैं जिनमें 1200 से ज्यादा में अवमानना के केस हैं। इसी तरह कृषि विभाग के 7 हजार, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 5500, स्वास्थ्य के 4000 समेत अन्य विभागों के मामले कोर्ट में लंबित हैं। इनमें अधिकतर मामले वरिष्ठता, प्रमोशन, महंगाई भत्ता न मिलने, एरियर का भुगतान न होने के अलावा तबादलों के हैं।कोट्सराज्य की मुकदमा नीति और लोक अदालतों के जरिए रोज कोशिश करके मामलों का निराकरण उनकी संख्या कम किए जाने की प्रक्रिया चल रही है। कर्मचारियों के मामले में आंतरिक परिवाद समितियां बनाई गई हैं, जिनमें कर्मचारियों के ट्रांसफर और इंक्रीमेंट जैसे मामलों का निराकरण हो जाए। जिन मामलों का निराकरण किया जाता है, उन्हें हाईकोर्ट से भी शेयर किया जाता है।