हर प्रतिमा के भीतर से निकल रहा है एक खास संदेश, जो जीने की राह दिखाता है
इंदौर/उज्जैन: उज्जैन स्थित महाकाल लोक में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती जा रही है। 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों लोकार्पण के सप्ताहभर बाद हजारों श्रद्धालु महाकाल लोक की महिमा को निहार चुके हैं। इस अद्भुत, अलौकिक और अतुलनीय लोक की अविस्मरणीय और अनूठी यात्रा आपको रूबरू कराती है आध्यात्म और भारतीय दर्शन, अष्टांग योग और ध्यान (मेडिटेशन) के उस पहलू से, जिस पर मानवीय मूल्यों और जीवन यात्रा का सार टिका है। महाकाल लोक को इसी नजरिए से देखने की जरूरत है, तब ही आनंद की अनुभूति होगी।पं. विजय शंकर मेहता बता रहे हैं महाकाल लोक की प्रत्येक मूर्ति के आकार लेने के पीछे की कहानी और उनसे मिलने वाली सीख के बारे में…राजाधिराज दाता अवंतिका नाथ महाकाल महाराज की नगरी उज्जयिनी में 12 ज्योतिर्लिंग में से एक ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर यहां स्थापित हैं। ये पूरा क्षेत्र महाकाल वन कहलाता है। इस भूमि की विशेषता है कि यहां किया हुआ कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। अब इस महाकाल वन में दो भाग हो गए हैं। पहले भाग में महाकाल महाराज स्थापित हैं। जब हम उनके पाषाण रूप यानी शिवलिंग के दर्शन करते हैं, तो रोम-रोम शिवकृपा से भर जाता है। हम आनंद से भर जाते हैं और इसी महाकाल वन में अब मानव निर्मित महाकाल लोक स्थापित हो गया है। अनेक प्रतिमाए हैं, कलाकृतियां हैं, पास में सागर है। इस महाकाल लोक का जब हम भ्रमण करते हैं, तो पर्यटन की दृष्टि से तो बहुत आनंद मिलेगा।हर कलाकृति, हर मूर्ति के साथ उसका इतिहास लिखा है। उस वर्णन को पढ़कर भी जानकारी बढ़ेगी, लेकिन जैसा आनंद हमने शिवलिंग के दर्शन से प्राप्त किया इस महाकाल लोक की प्रत्येक प्रतिमा के पीछे जो संदेश है, उसको बहुत बारीकी से समझना चाहिए। केवल सतही स्तर पर हम घूम कर आ जाएं तो लाइट एंड साउंड का प्रभाव पड़ेगा। सुंदर-सुंदर मूर्तियों को देख कर अच्छा भी लगेगा पर हासिल क्या हुआ। इसलिए जब यहां भ्रमण करने आएं, तो प्रत्येक मूर्ति के सामने थोड़ी देर खड़े रहें। उसके निर्माण के सौंदर्य की प्रशंसा करें और साथ ही उसके भीतर से जो संदेश निकल रहा है, उसे भी ग्रहण करें।यदि इस ढंग से हम महाकाल लोक का दर्शन करेंगे, तो आनंद भी मिलेगा। ठीक वैसा ही आनंद, जैसा हमें शिवलिंग के दर्शन से मिला या मिलता है। शिवलिंग के दर्शन से हम आत्मा तक अभिभूत हो जाते हैं और महाकाल लोक की प्रतिमाओं के शिव लीला के दर्शन से हमारा रोम-रोम झंकृत हो जाएगा। महाकाल लोक है तो अद्भुत। अब यह हमारे ऊपर है कि हम कितना आनंद लेते हैं। ये जो महाकाल लोक है, जिसे कॉरिडोर भी कहा है, यह एक जीने की राह है। अब इस जीने की राह से गुजर कर हम क्या सूत्र लेते हैं, ये हमारे ऊपर है।यहां तस्वीरों में देखें और समझें महाकाल लोक की टॉप-11 प्रतिमाओं से जुड़े प्रसंग और उनसे मिलने वाली शिक्षा के बारे में …पं. विजय शंकर मेहता के बारे मेंउज्जैन के त्रिवेणी पर स्थित हनुमान चालीसा ध्यान केंद्र ‘शांतम’ के संस्थापक पं. विजय शंकर मेहता आध्यात्मिक गुरु हैं। वे लंबे समय तक पत्रकारिता क्षेत्र से भी जुड़े रहे हैं। वर्तमान में वे हनुमान चालीसा से मिलने वाली सीख के जरिए जीवन जीने की कला सिखाने और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए मानव सेवा का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे