घर में चल रही थी अंतिम संस्कार की तैयारी, अचानक चलने लगी बुजुर्ग महिला की सांस
कोरबा। इलाज के लिए एक निजी अस्पताल में भर्ती हुई बुजुर्ग महिला को वहां के चिकित्सकों ने दो दिन बाद मृत घोषित कर दिया। खबर मिलते ही गांव में अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हो गई। मुक्तिधाम ले जाने से पहले परिजन शव को स्नान करा रहे थे, तभी उन्हें लगा कि दिल की धड़कन अब भी चल रही है। संजीवनी 108 की मदद से पुनः उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां पांच घंटे इलाज के बाद उसने दम तोड़ दिया। परिजनों ने निजी अस्पताल और वहां के चिकित्सकों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया है।
ग्राम तिलकेजा स्थित पहंदा मार्ग पर वार्ड क्रमांक-15 निवासी तुलाराम की पत्नी संतरा बंजारे (56) को तबियत खराब होने पर 26 मई को कोसाबाड़ी स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। दो दिन बाद 28 मई को शाम करीब चार बजे अस्पताल के चिकित्सकों ने मृत घोषित कर शव परिजनों को सौंप दिया। इसकी सूचना परिवार व गांव के लोगों को दी गई और उसके बाद उनके अंतिम संस्कार की तैयारी भी शुरू कर दी गई। 29 मई को संतराबाइ के दाह संस्कार करने के लिए समुदाय के रीति-रिवाज अनुरूप कार्यक्रम शुरू हुआ और अंतिम संस्कार के लिए मुक्तिधाम ले जाने से पहले पार्थिव शरीर को स्नान कराया गया।
स्नान के वक्त परिजनों को शरीर के स्पर्श से महसूस हुआ कि उनके शरीर में हलचल जारी है। अपने स्तर पर ध्यान से जांच करने पर उन्होंने पाया कि संतराबाइ की नब्ज ही नहीं, हृदय की धड़कन भी चल रही है। उनके जीवित होने का एहसास होते ही तत्काल आपात चिकित्सा हेल्पलाइन संजीवनी 108 को काल किया गया और एंबुलेंस से उन्हें पुनः जिला अस्पताल ले जाकर भर्ती कराया गया। जिला अस्पताल में महिला का पांच घंटे तक उपचार किया गया और उसके बाद उनकी मौत हो गई। इसके बाद उन्हें गांव लाकर पहंदा मार्ग स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया गया।
70 हजार में खेत गिरवी रख कराया इलाज
मृतक महिला के पुत्र कुंजलराम का कहना है कि निजी अस्पताल के चिकित्सकों की इलाज में लापरवाही के चलते उन्हं बचाया नहीं जा सका। इलाज के लिए परिजनों ने अपने खेत 70 हजार में गिरवी रख इलाज के लिए रकम जुटाई थी, जो डाक्टर डकार गए पर इलाज के नाम पर केवल खानापूर्ति की गई। अगर ऐसा न होता तो निजी अस्पताल में मृत घोषित करने के बाद जिला अस्पताल में भला पांच घंटे कैसे इलाज हो पाता।
रुपये के लिए घोंट रहे मानवता का गला
मृतका के छोटे पुत्र रामचरण ने बताया कि मोटी रकम लेकर भी अस्पताल में इलाज के दौरान भी मरीज व परिजनों से ऐसा बर्ताव किया जाता है, जैसे वे उपकार कर रहे हों। इसके बाद जीवित महिला को मृत घोषित कर दिया गया, जिससे स्पष्ट होता है कि रुपये के आगे ऐसे अस्पताल व डाक्टरों की मानवता भी मर चुकी है। अगर सही तरीके से उपचार किया जाता तो आज उनकी माता परिवार के बीच होती और हम उन्हें दुआ दे रहे होते।