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कश्मीर घाटी की दुर्गम पहाड़ियों में 75 किलोमीटर तक साइकिल यात्रा कर लौटीं प्रो. अर्चना चहल का इंटरव्यू

प्रयागराज: साइकिल यात्रा पूरी करने के बाद प्रो. अर्चना चहल खुशी का इजहार करते हुए।बारामुला से अमन सेतु तक दुर्गम पहाड़ियों में 75 किलोमीटर तक साइकिल यात्रा कर तिरंगा फहराने वाली प्रो. अर्चना चहल ने कहा-कि आज देश की बेटियां किसी से कम नहीं हैं, उन्हें लिमिट में मत बांधो। तुम ये नहीं कर सकती, तुम वो नहीं कर सकती, तुम्हारे बस का कुछ नहीं है। तुम लड़की हो, तुम्हें ये नहीं करना चाहिए, तुम्हें वो नहीं करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे । इनको बचपन से बेटियों को सुनना बंद करो। बेटियां सब कुछ कर सकती हैं।इस साइकिल रैली में जोश, जुनून और जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ था।महिलाएं किसी से कम नहीं हमने साबित कियालड़कियों को हमेशा घर से ही लिमिट में बांधने की शुरुआत होती है। मेरा मानना है कि यह गलत है। कभी लड़कियों को अंडर इस्टीमेट मत करो। उन्हें लिमिट में मत बांधो। यह कहना है अभी हाल ही में बारामुला से अमन पोस्ट तक 75 किलोमीटर तक साइकिल यात्रा करके वापस लौटीं इलाहाबाद विश्वविद्यालय की फिजिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट की प्रो. अर्चना चहल ने दुर्गम पहाड़ियों के बीच साइकिल से 75 किलोमीटर घाटी की यात्रा करने के दौरान हुए अनुभवों और रोमांच को के साथ साझा किया। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश।प्रो. अर्चना चहल को यह पुरस्कार भी दिया गया।सवाल: ये साइकिल रैली किसकी ओर से आयोजित थी।जवाब: यह रैली बेसिकली कश्मीर की छात्राओं और महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाने के लिए आयोजित की गई थी। इसका आयोजन रक्षा मंत्रालय की ओर से कश्मीर में बारामुला से कमान अमन पोस्ट तक किया गया। इसकी कुल लंबाई 75 किमी थी।सवाल: इस रैली में कहां कहां से महिलाओं ने भाग लिया था?जवाब: 7 5 किलोमीटर लंबी इस साइकिल रैली में देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से 140 महिलाओं ने प्रतिभाग किया था।सवाल: इसका उद्देश्य क्या था?जवाब : इस साइकिल रैली का उद्देश्य बारामूला से उड़ी कमान अमन सेतु तक अमन-चैन का पैगाम देना था। यह प्रतियोगिता रक्षा मंत्रालय की ओर से डागर यूनिट के द्वारा आयोजित की गई थी।रैली स्टार्ट होने से पूर्व प्रतिभागी।सवाल: प्रयागराज से आपके अलावा और कितनी महिलाओं ने प्रतिभाग किया था?जवाब : मेरे अलावा प्रयागराज पेसर्स ग्रुप की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली 12 महिलाओं ने भाग लिया था।सवाल: आपको सबसे ज्यादा दिक्कत कब हुई?जवाब : फिजिकल एजुकेशन टीचर होने के कारण मेरी फिजिकल एक्सरसाइज बढ़िया है। इसलिए मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। हां, 25 किलोमीटर की यात्रा के बाद मेरी साइकिल खराब हो गई थी जिससे मुझे करीब 10 किलोमीटर तक दौड़कर निकालना पड़ा। मैं रुकी नहीं। दौड़ती रही और 10 किलोमीटर बाद जब साइकिल मिली तब जाकर फिर से साइक्लिंग शुरू की और साइकिल रैली पूरी की।प्रो. अर्चना चहल साइकिल रैली के बाद आयोजित समारोह को संबोधित करतीं हुईं।सवाल: दुर्गम पहाड़ियों पर आपको साइकिल राइडिंग में क्या दिक्कत आई?जवाब: 8 बजे सुबह यात्रा शुरू हुई थी। जब हम 30 किलोमीटर पहुंचे तो बारिश शुरू हो गई। उस समय लगा था कि कैसे यह यात्रा पूरी होगी। हालांकि माहौल ऐसा था कि हम बारिश से डरे नहीं। चलते गए और हमने 75 किलोमीटर की यात्रा पूरी की। हमारे साथ दो महिलाएं थीं, जिनकी उम्र 59 वर्ष और 63 वर्ष थी। उनका उत्साह और उनकी हिम्मत हमें और थकने नहीं दे रही थी।सवाल: आप इस उम्र में भी इतनी फिट कैसे हैं?जवाब: हम नेचर के करीब रहने की कोशिश करते हैं। फिजिकल एक्टिविटी, एक्सरसाइज और नियमित योगा करते हैं। हमारा ग्रुप प्रयागराज पेसर्स बीच बीच में साइकिल राइ्ड्स भी करता रहता है। तो साइक्लिंग भी करते रहते हैं। सही डाइट लेना और समय पर सोना हम नहीं भूलते। यही हमारी फिटनेस का राज है।सवाल : आज जब मोटापा एक बड़ी महामारी बनकर उभर रहा है। ऐसे में आप महिलाओं के लिए एक रोल मॉडल हैं। क्या संदेश देंगी।जवाब: देखिए, मेरा मानना है कि जितना हो सके शरीर कर उपयोग करना चाहिए। मुझे देखिए मैंने अपने दफ्तर में एसी नहीं लगा रखा है। मेरे घर में भी एसी लगा तो है पर मैं बहुत कम चलाती हूं। मेरा मानना है कि हम प्रकृति के जितने करीब रहेंगे उतने ही अधिक वर्ष तक जीवित भी रहेंगें और हेल्दी लाइफ जिएंगे।इस साइकिल यात्रा में कश्मीरी छात्राओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।सवाल: आज भी बेटियों और बेटों में फर्क किया जाता है, क्या कहेंगी?जवाब : यह तो बहुत बड़ी बुराई है। आज महिला क्या नहीं कर सकती है। बेटियां घर, समाज और देश को बेटों से कहीं ज्यादा सेवा करती हैं। जब हम दुर्गम पहाड़ियों में 75 किलोमीटर की साइकिल से चढ़ सकते हैं तो लड़कियां क्या नहीं कर सकती हैं। आज बेटियां आईएएस, आईपीएस, साइंटिस्ट भी बनती हैं और सेना में अफसर भी। प्लेन भी उड़ाती हैं और फाइटर प्लेन भी चलाती हैं। जमाना बदल रहा है। समाज को अपनी सोच बदलनी होगी।