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वर्तमान परिदृश्य में रोजगार के लिए संस्कृत है सबसे महत्वपूर्ण

जबलपुर। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर व संस्कृत भारती महाकौशल न्यास के सहयोग से चल रहे 15 दिवसीय संस्कृत प्रशिक्षण वर्ग का समापन किया गया। जहां रादुविवि कुलपति प्रो.कपिल देव मिश्र ने अध्यक्षता की। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो कपिल देव मिश्र ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में रोजगार के लिए संस्कृत सबसे महत्त्वपूर्ण है। पाश्चात्य देश भी भारतीय ज्ञान निधि कोष को जानने के लिए प्रयासरत हैं। जिसके लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान अत्यावश्यक है। पाश्चात्य देशों में भी संस्कृत के क्षेत्र में अनेक व्यवसायिक अवसर उपलब्ध हैं। जैसे- प्रबंधन के क्षेत्र में कुशल प्रबंधक के रूप में, भारत सरकार द्वारा दूतावासों में सांस्कृतिक राजदूत के रूप में, फैमिली एडवाइजर के रूप में, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में वैद्य और शिक्षक के रूप में आप अपना भविष्य बना सकते हैं।

भारतीय भाषाओं की जननी: कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कामत ने कहा कि भारत के जिस प्रान्त में जाएंगे वहां कुछ न कुछ शब्द संस्कृत के होंगे ही क्योंकि वह हमारे भारत की लोकभाषा है। भारत मे बोली जाने वाली प्राचीनतम भाषाओं में से एक है संस्कृत। भारत में संस्कृत भाषा की उत्पत्ति लगभग 4500 ईसा पूर्व हुई थी। संस्कृत को सभी भारतीय भाषाओं की जननी माना जाता है। एक भाषा के तौर पर संस्कृत की खूबसूरती को इसी बात से समझा जा सकता है कि अंग्रेजी भाषा में जिस भाव को व्यक्त करन के लिये चार से छह शब्दों की आवश्यकता होगी उसे संस्कृत में मात्र एक शब्द के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है। हजारों वर्ष पुरानी जनमानस से लेकर साहित्य की भाषा रही संस्कृत कालान्तर में करीब-करीब सुस्ता कर बैठ गई है। जिसका एक प्रमुख्य कारण इसे देवत्व का मुकुट पहनाकर पूजाघर में स्थापित कर दिया जाना। भाषा को अपने शब्दों की चैकीदारी नहीं सुहाती, भाषा कॉपीराइट में विश्वास नहीं करती, वह तो समाज के आंगन में बसती है। हमारी संस्कृत भाषा हमारी भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई एक प्राचीन भाषा है।

वैलिंगटन में संस्कृत में भी शपथ ली: संस्कृत भारती ने संस्कृत भाषा का अध्ययन प्रारम्भ कराया है। वर्तमान में संस्कृत भाषा सिर्फ भारत तक नहीं अपितु विदेशों तक भी अपने स्वरूप में विस्तार पा रही है। हिमाचल के डॉ. गौरव शर्मा ने लेबर पार्टी से चुनाव लड़कर भारी मतों से जीत प्राप्त करते हुए न्यूजीलैंड के वैलिंगटन स्थित संसद भवन में मौरी भाषा के अलावा संस्कृत में भी शपथ ली। संस्कृत भाषा में शपथ लेने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि-संस्कृत भाषा का विश्व की अन्य भाषाओं से किसी ना किसी रूप में जुड़ाव है। वैश्विक स्तर पर संस्कृत के बढ़ते प्रभाव को देखकर भारत सरकार ने भी नई शिक्षा नीति में संस्कृत भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए कई प्रावधान किए हैं। जिससे अपने खोए हुए स्वरूप को संस्कृत भाषा पुनः प्राप्त कर सके। कार्यक्रम के समन्वयक प्रो राधिका प्रसाद मिश्र ने विश्वविद्यालयीय संस्कृत विभाग पर प्रकाश डालते हुए उसकी उपादेयता से परिचित कराते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में संस्कारधानी जबलपुर संस्कृत विद्या का केन्द्रभूत स्थल है। यहां संस्कृत अध्ययन हेतु परम्परागत (शास्त्री-आचार्य) व आधुनिक (बी.ए.-एम.ए.) अनेक विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय हैं। जिनमें रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मध्यक्षेत्र संगठन मंत्री प्रमोद पण्डित,सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ जागेश्वर पटले, प्रशिक्षक नितेश मिश्र, सन्दीप मिश्र सहित 200 से अधिक प्रतिभागी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन रा.दु.वि.वि. संस्कृत विभाग के अतिथि विद्वान एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ अखिलेश कुमार मिश्र ने किया है।