स्कूलों में ना तो हिजाब की इजाजत और ना ही भगवा गमछे की
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हिजाब विवाद पर सुनवाई हो रही है। इस बीच सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कर्नाटक सरकार ने धर्म के आधार पर स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया था। उन्होंने यह भी कहा कि स्कूलों में न तो भगवा गमछा और न ही हिजाब पहनने की अनुमति है। आपको बता दें कि कल आठवें दिन सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सरकार की ओर से पेश हुए तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ को यह भी बताया कि याचिकाकर्ता छात्र पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से प्रभावित हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि 2004-2021 के बीच हिजाब को लेकर कभी कोई विवाद नहीं हुआ। यह अचानक ही हुआ। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि पीएफआई के खिलाफ चार्जशीट की कॉपी कोर्ट में पेश की जाएगी। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या आवश्यक धार्मिक प्रथा के मुद्दे को दूर रखते हुए दलीलें सुनी जा सकती हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने धार्मिक प्रथाओं और आवश्यक प्रथाओं के बीच अंतर पर मिसाल कायम की है। दवे ने अदालत को बताया कि हिजाब सदियों से पहना जाता रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि मुस्लिम समुदाय ने एक स्वर में इस प्रथा को स्वीकार किया है, इसलिए इसे धर्म के हिस्से के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। दवे ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ को यह भी बताया कि कर्नाटक सरकार के नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि पीयू कॉलेजों में ड्रेस कोड अनिवार्य नहीं है। उन्होंने कहा, “2020 के नियम कहते हैं कि कुछ प्रधानाध्यापकों ने ड्रेस कोड लागू किए, जो कि अवैध हैं। यह एक बोझ है। बहुत से लोग ड्रेस नहीं खरीद सकते हैं।” इसका जवाब देते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा, “कुछ स्कूलों में पैसे वाले और गरीब दोनों ही परिवार के बच्चे पढ़ते हैं। कोई बेंटले में स्कूल आ रहा है और कोई पैदल ही। ड्रेस से समानता दिखती है। ड्रेस से अमीरी और गरीबी को विभाजित नहीं किया जा सकता है।” पीठ ने यह भी कहा, “हमारे पास ड्रेस के साथ हिजाब की अमुमति देने को लेकर सवाल है। हम 8 दिनों से दलीलें सुन रहे हैं।.