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भारत के लिए अमेरिकी वैक्सीन लेना फिलहाल मुश्किल, विदेश मंत्री एस जयशंकर हल खोजने की करेंगे कोशिश

नई दिल्ली। कई राज्यों और राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार को विदेश से कोरोना वैक्सीन आयात करने का सुझाव तो दिया जा रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि अमेरिका की प्रमुख वैक्सीन निर्माता कंपनियां माडर्ना और फाइजर भी फिलहाल भारत को वैक्सीन देने में असमर्थ हैं। इन दोनों कंपनियों की जितनी क्षमता है उससे ज्यादा का आर्डर ये पहले ही ले चुकी हैं। ऐसे में अमेरिका के दौरे पर पहुंचे विदेश मंत्री एस जयशंकर की वहां वैक्सीन उत्पादन को लेकर जो बात होगी उसमें इस समस्या के समाधान पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाएगा। भारत अमेरिका को इस बात के लिए मनाने की कोशिश कर रहा है कि वह अपने अतिरिक्त स्टाक से कुछ वैक्सीन फिलहाल दे ताकि अगले दो-तीन महीनों के लिए वैक्सीन की कमी पूरी की जा सके। भारत को भरोसा है कि जुलाई-अगस्त के बाद उसे बाहर से वैक्सीन मंगाने की जरूरत नहीं होगी। जयशंकर की इस बारे में बाइडन प्रशासन के अधिकारियों से लेकर वैक्सीन उत्पादक कंपनियों के प्रतिनिधियों से बात होने की संभावना है।

भारत की एक समस्या यह भी है कि वह कम समय में बड़ी मात्रा में वैक्सीन खरीदने के लिए इन कंपनियों से बात कर रहा है। भारत की बड़ी मांग को सिर्फ अमेरिका की फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना या फिर चीन की दो वैक्सीन उत्पादक कंपनियां ही पूरी कर सकती हैं। चीन की कंपनियों के साथ भारत की कोई बातचीत नहीं हो रही है। केंद्र सरकार और राज्यों के स्तर पर दोनों अमेरिकी कंपनियों के साथ संपर्क साधा गया है। सूत्रों के मुताबिक फाइजर-बायोएनटेक और माडर्ना दोनों की तरफ से यह बताया है कि वह तकरीबन इस पूरे वर्ष के दौरान सिर्फ पहले से किए गए करार के मुताबिक ही वैक्सीन का उत्पादन करने की स्थिति में हैं।

उत्पादन क्षमता बढ़ा रही है फाइजर

फाइजर अमेरिका, यूरोपीय देशों, जापान, कनाडा और कुछ अन्य देशों से वैक्सीन की कुल 319 करोड़ डोज देने का कांट्रेक्ट कर चुका है। जबकि अप्रैल-मई 2021 तक उसकी उत्पादन क्षमता 300 करोड़ डोज रहने की बात कही जा रही है। कंपनी क्षमता बढ़ाने पर लगातार काम कर रही है। माना जा रहा है कि अगले वर्ष उसकी वैक्सीन उत्पादन की क्षमता सालाना 400 करोड़ डोज की हो जाएगी।

माडर्ना की उत्पादन क्षमता भी कम

दुनिया की वैक्सीन उत्पादन और वितरण पर नजर रख रही अंतरराष्ट्रीय एजेंसी ड्यूक, ग्लोबर हेल्थ इनोवेशन सेंटर की रिपोर्ट बताती है कि दूसरी अमेरिकी कंपनी माडर्ना की क्षमता जनवरी, 2021 में 60 करोड़ थी जो मई, 2021 में 80 करोड़ हो चुकी है। हालांकि इसने तमाम देशों के साथ कुल 110 करोड़ डोज आपूर्ति का कांट्रेक्ट कर रखा है। माडर्ना का भी कहना है कि वह बड़े पैमाने पर अपनी क्षमता बढ़ा रही है और अगले वर्ष से उत्पादन क्षमता 300 करोड़ डोज सालाना का कर लेगी। लगभग ऐसी ही स्थिति दूसरी वैक्सीन उत्पादक कंपनियों की भी है। हालांकि इनके अलावा जानसन एंड जानसन (जेएंडजे) भी है जो भारत में उत्पादन शुरू करने के लिए बात कर रही है। इसकी क्षमता भी बहुत खास नहीं है कि भारत सरकार या राज्य सरकार इससेवैक्सीन खरीद सके।

जिम्मेदारी से भी बचना चाहती हैं अमेरिकी कंपनियां

अमेरिकी वैक्सीन के साथ आपूर्ति ही एक मात्र समस्या नहीं है। अमेरिकी कंपनियों के साथ वैक्सीन के गलत प्रभाव होने की स्थिति में हर्जाने के उत्तरदायित्व का पेंच भी फंसा हुआ है। अमेरिकी कंपनियां चाहती हैं कि हर्जाने का उत्तरदायित्व उन पर नहीं पड़े। इसका बोझ भारत सरकार उठाने को तैयार हो।

महंगी भी होगी अमेरिकी वैक्सीन

इसके अलावा अमेरिकी वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक के मुकाबले महंगी भी बहुत होंगी। मोटे तौर पर फाइजर की वैक्सीन भारत में 1,350 रुपये प्रति डोज और माडर्ना की 1,450 रुपये प्रति डोज की होगी। अमेरिकी वैक्सीन का रख-रखाव भी भारत में उपलब्ध मौजूदा वैक्सीन से अलग होगी। इसके लिए अलग नेटवर्क बनाना होगा।