ब्रेकिंग
युवा ब्राह्मण समाज भाटापारा का द्वितीय चरण का वृक्षारोपण कार्यक्रम:- युवा ब्राह्मण समाज एवं मयूर परिवहन के संयुक्त तत्वाधान में वृक्षारोपण का कार्यक्र... विधायक ने केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री से भाटापारा को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने की रखी मांग भाटापारा को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने की मांग - विधायक ... युवा ब्राह्मण समाज भाटापारा के प्रथम आयोजन में ,श्री पावन धाम कामधेनु गौशाला मे गौ पूजन,वृक्षारोपण एवं प्रसादी का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ छत्तीसगढ़ स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता में शामिल हुए, विधायक बेहतर खेल सुविधा मेरी प्राथमिकता - इन्द्र साव पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रभुराम से प्रदेश वासियों की खुशहाली की कामना की भाटापारा में राम भक्तों की टोलियों को किया सम्मानित भाटापारा शहर में आयोजित राम सप्ताह कार्यक्रम में आने वाले श्रद्धालुओं एवं आमजनों की सुविधा के लिए समुचित यातायात एवं पार्किंग की व्यवस्था अपने 8 माह की नाकामी छुपाने प्रदेश सरकार विपक्ष के नेताओं को कर रही परेशान::-इंद्र साव बलौदा बाजार की घटना देश को शर्मसार करने वाली :-सत्यनारायण शर्म... नगर साहू समाज महिला प्रकोष्ठ की बहनों ने विधायक इन्द्र साव को बांधी राखी जिला बलौदाबाजार-भाटापारा पुलिस द्वारा बलौदाबाजार नगर में घटित तोड़फोड़ एवं आगजनी की घटना के संबंध में भिलाई नगर विधायक देवेन्द्र यादव को किया गया गिर... नगर के ऐतिहासिक जय स्तंभ चौक में विधायक इन्द्र साव ने ध्वजारोहण किया, इसके पूर्व भारत माता कि मूर्ति पर माल्यार्पण कर स्वतंत्रता दिवस समारोह का शुभारं...

बंगाल में वर्चस्व कायम रखने का हथियार रही है हिंसा, सूबे का रहा है खूनी सियासी इतिहास, जा चुकी हैं हजारों जानें

कोलकाता। बंगाल में दशकों से हिंसा के हथियार से ही सियासी वर्चस्व कामय की जाती रही है। बांग्ला में एक मशहूर कहावत है- ‘जेई जाए लंका, सेई होए रावण’ अर्थात जो भी लंका जाता है, वही रावण बन जाता है। इसी कहावत के अनुरूप यहां का खूनी सियासी इतिहास है। राजनीतिक हिंसा में हजारों जानें जा चुकी है। 2021 के विधानसभा चुनाव के नतीजे रविवार को जैसे ही घोषित हुए वैसे ही हिंसा का दौर शुरू हो गया। उन इलाकों में अधिक हिंसा हो रही है जो मुस्लिम बहुल इलाका है।

हुगली का आरामबाग हो या फिर बीरभूम जिले का नानूर या फिर शीतलकूची और दिनहाटा। जिस तरह से भाजपा समर्थकों व कार्यकर्ताओं की दुकानें लूटी गई, हत्याएं हुई है। उसका वीडियो यह बताने को काफी है कि इस हिंसा के पीछे कौन है और क्यों पुलिस मूकदर्शक बनी है। हिंसा के इन आरोपों को सोमवार को तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी खारिज कर दिया था। परंतु, जब ममता विपक्ष में थीं तो वही वामपंथी शासन में 50 हजार हत्याएं होने की बात कहती थी और कामरेड आरोपों को नकारते थे।

भाजपा का आरोप है कि पिछले 36 घंटे में उसके नौ कार्यकर्ताओं की तृणमूल समर्थकों ने हत्या कर दी है और कई जख्मी हैं। इतना ही नहीं भाजपा का कहना है कि राज्य में विधानसभा नतीजों के बाद हिंसा तथा अन्य मामलों की 272 घटनाएं घटी हैं। यह बताने को काफी है कि मतगणना के बाद बंगाल किस तरह से लहूलुहान हो रहा है। वैसे तो बंगाल में चुनाव पूर्व या बाद हिंसा नई बात नहीं है। परंतु, इस बार कुछ अधिक हो रही है। इसकी वजह यह है कि जब-जब विपक्ष मजबूती के साथ चुनाव लड़ा है और सत्तारूढ़ जीती है तो हिंसा बढ़ी है। इसका प्रमाण 2001,2006 का विधानसभा चुनाव भी है।

बंगाल में दूसरे विधानसभा चुनाव के बाद से ही जारी है हिंसा की सियासत

अतीत में झांके तो 1959 के खाद्य आंदोलन के दौरान 80 लोगों की जानें गई थीं, जिसे वामपंथियों ने कांग्रेस की विपक्ष को रौंदकर वर्चस्व कायम करने की कार्रवाई करार दिया था। इसके बाद 1967 में सत्ता के खिलाफ नक्सलबाड़ी से शुरू हुए सशस्त्र आंदोलन में सैकड़ों जानें गईं थीं। 1971 में जब कांग्रेसी सरकार बनीं और सिद्धार्थ शंकर रॉय मुख्यमंत्री बने तो बंगाल में राजनीतिक हत्याओं का जो दौर शुरू हुआ, उसने सभी हिंसा को पीछे छोड़ दिया। कहा जाता है कि 1971 से 1977 के बीच कांग्रेस ने विपक्ष की आवाज दबाने के लिए हिंसा को हथियार बनाया था और यही हिंसा 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पतन और माकपा नीत वाममोर्चा के उदय की वजह बनी। इसके बाद कांग्रेस का बंगाल में क्या हश्र हो हुआ, यह सर्वविदित है।

1977 में भारी बहुमत से सत्ता में आने के बाद वामपंथियों ने भी हिंसा की राह को ही अपना लिया और सियासी वर्चस्व कायम रखने के लिए हत्या व हिंसा का संगठित तरीके से इस्तेमाल शुरू कर दिया। 1977 से 2011 तक वाममोर्चा के 34 वर्षों के शासनकाल में बंगाल की सियासी फिजा पूरी तरह से लहूलुहान रही। 2007 से 2011 तक सियासी हिंसा व हत्याओं में बंगाल पूरे देश में नंबर एक पर था। 2006-07 में नंदीग्राम में 14 और सिंगुर में कई हत्याएं हुईं। यह दौर वामपंथी शासन के अंत और तृणमूल के सत्ता के शिखर पर पहुंचने का था।

इसके बाद 2011 में ममता सरकार सत्ता में आई, लेकिन सियासी हिंसा और हत्याओं का दौर जारी है। 2013 के पंचायत चुनाव के दौरान भीषण हिंसा हुई थी। ममता ने 2011 के विधानसभा चुनाव में नारा दिया था-‘बदला नहीं…बदल चाहिए’, लेकिन हुआ उसके विपरीत। बंगाल में जो रवायत रही है उस अनुसार यह हिंसा इतनी जल्दी समाप्त होने वाली नहीं है। यह तब तक जारी रहेेगी जब तक भाजपा को कमजोर नहीं किया जा सकेगा।