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बेपरवाह रहे स्वास्थ्य के अफसरशाह

रायपुर। राज्य में कोरोना के तेजी से पांव पसारने व चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था के पीछे विभाग का नेतृत्व कर रहे शीर्ष अफसरों की भूमिका काफी अहम रही। जो कार्यालय में बैठ व्यवस्था के नाम पर काम तो गिनाते रहे, लेकिन जमीन पर दिखाई नहीं दी। हाल ही में विभाग में बड़े पद पर जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी को भी तुरंत यह बात समझ आ गई। कहा जा रहा है पद पर आते ही विभाग की अव्यवस्थाएं देख उनकी भी आंखें फटी की फटी रह गई थी।

उन्होंने कोरोना नियंत्रण पर चल रहे काम को देख उन्हें समझ यह भी आ गया कि शासन की फजीहत यूं ही नहीं हो रही थी। लेकिन नए अधिकारी एकाएक कुछ करना नहीं चाहते। करीबियों का कहना है कि नींव मजबूत कर ही आगे व्यवस्थाओं को कसने की तैयारी में हैं। उन अफसरों को भी चिह्नित कर रहे जो सिर्फ नाम ही हैं।

जब कोरोना रोगी आइसीयू देने पर भड़के प्रभारी

कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए आइसीयू, वेंटिलेटर बड़ी समस्या बनी हुई है। ऐसे में राजधानी के बड़े शासकीय अस्पतालों में भी गरीब गंभीर मरीजों को बिस्तर मिलना आसान नहीं हैं। बात आम्बेडकर अस्पताल की है जहां हाल ही में एक कोरोना से गंभीर रोगी को उसकी स्थिति देखते हुए डॉक्टर ने आइसीयू में भर्ती कर दिया। ऐसी परिस्थितियों में वह अपने सीनियर से भर्ती को लेकर पूछना भूल गया।

क्या था प्रभारी महोदय डॉक्टर पर भड़क गए। और मरीज की स्थिति कैसे भी हो बिना पूछे आइसीयू वार्ड ना देने की नसीहत दे डाली। अस्पताल में यदि बिस्तर है और जरूरतमंद गरीब को इलाज की सुविधा देने पर दिक्कत ही क्या थी। खैर अस्पतालों में तो इस तरह की बातें होती रहती है। लेकिन उस डाक्टर की पहल से किसी भटकते कोरोना के गंभीर मरीज को इलाज मिल गया। यह अच्छी बात रही।

श्रद्धांजलि तक न दे पाए, तैयार था नियुक्ति का आर्डर

एक कर्मठ अधिकारी जिन्होंने अपने काम और मिली जिम्मेदारी को आजीवन इमानदारी के साथ निर्वहन किया। लेकिन जाने के बाद विभाग के चंद अधिकारियों ने उनके ऐसे श्रद्धांजलि दी कि उनके जाने की खबर मिलते ही जैसे संभागायुक्त के पद पर नियुक्ति का आर्डर तैयार था। उनके साथ काम करते कर्मी यह देखकर सन्न रह गए कि साहब को ढंग से श्रद्धांजलि तक ना दे पाए।

खबर मिलते ही रातों रात उनके पद पर आर्डर भी निकाल दिया। ऐसा क्या पहाड़ टूट रहा था कि दूसरे दिन का भी इंतज़ार नहीं कर पाए। नम आंखों से कर्मियों की यह बातें अपने आप में काफी कुछ बयां कर रही थी। लेकिन जिन्होंने उनके साथ काम किया उन्हें ही पता था उनके जाने के बाद क्या खोया। बात जरूर छोटी सी है। मगर यह बात काफी कुछ कह जाती है।

बिलिंग का खेल, जरा संभल के

आपदा को अवसर में बदलने सरकारी विभाग पीछे नहीं है। जिला स्वास्थ्य विभाग में भी यह काम धड़ल्ले से चलने की बातें सामने आ रही है। व्यवस्था से जुड़े एक कर्मचारी का कहना है कि विभाग में जहां अनाप-सनाप खर्च के बाद भी पीड़ित तक उसका लाभ नहीं पहुंच पा रहा। अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग में समान सप्लाई करने वालोन के साथ ही कुछ आधिकारी भी फर्जी बिल लगाकर राशि इधर-उधर कर रहे।

इतना ही नहीं किसी काम के लिए तो कुछ बिल पहले से ही तैयार रखा होता है। जिन्हें स्वीकृत बस करने की जरूरत होती है। महामारी के बीच जूझती राजधानी को जहां बेहतर काम और व्यवस्था की जरूरत है। वहीं कुछ अधिकारियों द्वारा इसे अवसर बना कर निजी लाभ के लिए काम किया जा रहा। जनता की जरूरतों को भी समझें साहब। कितना भी शातिर क्यों ना हो। आडिट में गलतियां जरूर सामने आएंगी।