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मेडिकल ऑक्सीजन के चारों स्रोतों- सिलेंडर, कॉन्सेंट्रेटर, प्लांट और लिक्विड ऑक्सीजन टैंक के बारे में जानें ए-टू-जेड

नई दिल्ली। देश में कोरोना की दूसरी लहर के बीच इन दिनों मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत और जरूरत की ही बातें हो रही हैं। ऑक्सीजन की कमी से कई मरीजों की जान जा चुकी है। ऐसे में इसकी बेसिक जानकारी हर किसी के लिए बेहद जरूरी हो गई है, ताकि आप मेडिकल ऑक्सीजन और इसके स्रोतों की अहमियत और इस्तेमाल के बारे में समझ सकें। मेडिकल ऑक्सीजन के मुख्य रूप से चार स्रोत होते हैं-सिलेंडर, कॉन्सेंट्रेटर, प्लांट और लिक्विड ऑक्सीजन टैंक। इनमें से सिलिंडर और कॉन्सेंट्रेटर बेहद कम संसाधन में उपलब्ध हो सकते हैं। पहले जानते हैं सिलिंडर के बारे में-

ऑक्सीजन सिलेंडर

कंप्रेस्ड गैस को ऑक्सीजन सिलेंडर में स्टोर किया जा सकता है। गैस मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में ऑक्सीजन गैस इन सिलेंडर में भरी जाती है। यह प्रक्रिया क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन या प्रेसर स्विंग एब्जारशन (पीएसए) के जरिए होती है। ये सिलिंडर अस्पतालों में मशीन के जरिए या फिर किसी मरीज को सीधे लगाए जा सकते हैं। इन सिलिंडर को बार-बार भरवाना एक चुनौती होता है। इस चुनौती से निपटने के लिए कई अस्पताल अपने कैंपस में पीएसए ऑक्सीजन प्लांट लगवा लेते हैं। वहीं, इसकी बिजली पर निर्भरता नहीं होती है। इसलिए जिन इलाकों में बिजली की समस्या हो, ये बेहद कारगर हैं। वहीं दूसरे ऑक्सीजन सिस्टम के साथ ये बैकअप का भी काम करते हैं। हालांकि, इसके साथ कई उपकरणों की जरूरत पड़ती है। दूसरे स्रोत की तुलना में ऑक्सीजन सिलिंडर की कीमत कम पड़ती है, लेकिन इसका मेंटनेंस, रिफिलिंग और ट्रांसपोर्टेशन महंगा पड़ता है। एबुलेंस और मरीजों को ले जाने वाले दूसरे वाहनों में भी इनका इस्तेमाल होता है।

ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर

ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर बिजली या बैटरी से चलने वाला ऐसा उपकरण होता है, जो वातावरण से ऑक्सीजन संघनित कर सकता है। कॉन्सेंट्रेटर में पीएसए यानी प्रेशर स्विंग एब्जार्सन तकनीक का इस्तेमाल होता है। यह नाइट्रोजन निकालकर 95.5 प्रतिशत कंसेंट्रेटेड ऑक्सीजन बनाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये पोर्टेबल होते हैं और इन्हें आसानी से कहीं ले जाया जा सकता है। ज्यादातर केस में इसे मरीज के पास ही लगाते हैं। घर के लिए भी ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर डिजाइन किए जाते हैं। इनका अधिकतम फ्लो रेट 5 से 10 लीटर प्रति मिनट होता है। विशेषज्ञ 10 लीटर वाले को बेहतर ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर मानते हैं। फ्लो-मीटर स्डैंट जैसे उपकरण की सहायता से ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की ऑक्सीजन को कई मरीजों को दिया जा सकता है। ज्यादातर कॉन्सेंट्रेटर बिजली से चलते हैं, इसलिए इसके बैकअप में ऑक्सीजन सिलेंडर होना चाहिए।

ऑक्सीजन प्लांट

ऑक्सीजन प्लांट ऑक्सीजन का केंद्रीय स्रोत होता है। इसके जरिए पाइप से ऑक्सीजन सीधे मरीजों तक पहुंचाई जा सकती है। ये प्लांट ऑक्सीजन बनाने में क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन या प्रेशर स्विंग एब्जार्सन (पीएसए) तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की तरह ही ऑक्सीजन प्लांट भी बिजली पर निर्भर होते हैं। इसमें से ऑक्सीजन बेहद तेज प्रेसर के साथ निकलती है, जिससे वेंटिलेटर जैसी मशीनों में ऑक्सीजन सप्लाई में इसका इस्तेमाल होता है। जबकि ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर से इन मशीनों में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं की जा सकती है। जैसा हमने ऊपर भी जिक्र किया है कि ऑक्सीजन प्लांट का इस्तेमाल सिलिंडर को रिफिल करने में भी किया जाता है। ऑक्सीजन प्लांट लग जाने के बाद मेडिकल फेसिलिटी में ऑक्सीजन की आपूर्ति आसान हो जाती है। फिर ट्रांसपोर्टेशन की समस्या नहीं होती है।

लिक्विड ऑक्सीजन टैंक

अस्पतालों में ऑक्सीजन का एक और स्रोत लिक्विड ऑक्सीजन टैंक स्थापित करना होता है। इन विशाल टैंक को समय-समय पर सप्लायर द्वारा भरा जाता है। इन टैंक से हेल्थ केयर फैसिलिटी की सेंटर पाइप सिस्टम में ऑक्सीजन सप्लाई की जा सकती है। हालांकि, इन टैंक को स्थापित करने के लिए काफी जगह की जरूरत होती है। यह सेल्फ वेपराइजेशन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिससे यह बिजली पर निर्भर नहीं होते हैं। इन मेडिकल ऑक्सीजन स्रोत के अलावा मरीजों को ऑक्सीजन देने के लिए फ्लो मीटर, रेगुलेटर, ह्यूमिडिफायर्स और वेंटिलेटर जैसी मशीनों की जरूरत पड़ती है।