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रायपुर में बैठकर बिहार की सरकारी बिजली और रोड कंपनी के खाते से 3.60 करोड़ उड़ाए

रायपुर। राजधानी रायपुर के टाटीबंध स्थित कैनरा बैंक शाखा से पिछले महीने तीन करोड़ 60 लाख 41 हजार रुपए क्लोन चेक से निकालकर ठगी करने वाले गिरोह का पुलिस भंडाफोड़ किया है। मामले में बैंक मैनेजर समेत गिरोह के मास्टर माइंड को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। पूछताछ में राजफाश हुआ कि ठग ने सात क्लोन चेक (नकली चेक) बनाकर पूरे पैसे निकाले। ये नकली चेक बिहार की साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (एसबीपीडीसीएल) और बिहार स्टेट रोड डेवलपमेंट कापोरेशन लिमिटेड (बीएसआरडीसीएल) के थे।

यही नहीं, शातिर ठग ने इस फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए दस लाख रुपये का लालच देकर बैंक मैनेजर तक को मिला लिया था। चौंकाने वाली बात यह थी कि जिस नंबर के चेक बैंक में लगे वो इन कंपनियों में सुरक्षित रखे हुए थे। इस ठगी काे अंजाम देने वाला सुहास हरिश चंद्र काले पिछले कई सालों से अपना गिरोह चला रहा था। पुलिस ने मास्टर माइंड के साथ बैंक मैनेजर आलोक कुमार वर्मा को गिरफ्तार कर लिया। उनके कब्जे से 95 लाख और 35 लाख रुपए के दो चेक बरामद किया गया है। वहीं जरूरतमंदों को ढूंढकर लाने वाले तीन आरोपित शमीम, एजाज और रमेश ठाकरे फरार हैं।

रायपुर एसएसपी अजय यादव ने गुरुवार दोपहर पुलिस कंट्रोल रुम में मामले का पर्दाफाश किया। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के नागपुर से सुहास हरीश चंद्र काले और ठगी में साथ देने वाले केनरा बैंक मैनेजर विनायक रेसीडेंसी टाटीबंध निवासी आलोक कुमार वर्मा (38) को गिरफ्तार किया है। आलोक मूलत: बिहार के गया जिले के ग्राम जमुआगा (वजीरगंज) के रहने वाला है।

जबकि हरिशचंद्र काले (32) आर्यानगर, कोराडीनाका, नागपुर का रहने वाला है। बैंक में उसने देवेंद्रनगर का पता व फर्जी दस्तावेज देकर खुद को विष्णु लक्ष्मी डेवलपर्स और रायपुर बिल्डर का डायरेक्टर बताया था। सुहास ने पूछताछ में बताया कि नागपुर के शमीम, रमेश ठाकरे और एजाज का काम ऐसे कंपनी या लोगों की जानकारी जुटाना होता था, जिन्हें निशाना बनाया जाना है।

शमीम नकली चेक बनाने का मास्टरमाइंड है। वो चेक को अपने खुफिया अड्डे पर कंप्यूटर की मदद से क्लोन चेक बनाता है। इसकी डिजाइनिंग और पेपर क्वालिटी बिल्कुल असली चेक की तरह होती है। बैंक के कर्मचारी भी फर्जी चेक को पकड़ नहीं पाते थे। एजाज गाड़ियां फाइनेंस करवाने का काम करता है। इसकी आड़ में वह बैंक की रेकी करता था। मैनेजर से दोस्ती कर उसे ठगी की योजना में मिलाना इसका काम था।

ऐसे किया फर्जीवाड़ा

सुहास ने केनरा बैंक टाटीबंध शाखा में विष्णु लक्ष्मी में डेवलपर्स के नाम से खाता खुलवाया, खुद को बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन का काम का ठेकेदार बताया। उसने बैंक प्रबंधन को ये जानकारी भी दी कि उसका साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी (एसबीपीडीसीएल) और बिहार स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएसआरडीसीएल) से कांट्रैक्ट है।

मार्च से मई के बीच उसने सवा महीने में दोनों सरकारी विभाग के सात चेक बैंक में जमा किए और कैश निकाल लिए। उसने जो चेक जमा किया है, वह बिहार के दोनों सरकारी विभाग के चेक की हुबहू कॉपी है। रकम निकालने का काम आराम से हो सके इसलिए सुहास ने बैंक मैनेजर आलोक कुमार को 10 लाख रुपए दिए। मैनेजर से भी पुलिस पूछताछ कर रही है।

इस वजह से हुआ भंडाफोड़

बिहार की बिजली कंपनी और रोड डेवलपर्स कॉर्पोरेशन के खाते से पैसे निकलने लगे, तब वहां के अधिकारियों ने बैंक से जानकारी मांगी। अफसरों ने बैंक से पूछा कि ये पैसे कैसे निकल रहे हैं। किस आधार पर भुगतान किया जा रहा है। बैंक ने उन छह चेक की कापी दोनों दफ्तरों को भेज दी, जिनके माध्यम से पैसे भेजे गए थे। उन्होंने रायपुर की दो कंपनी का नाम बताया, जिसने पैसा निकाला है।

सरकारी कंपनी के अधिकारियों ने केनरा बैंक के प्रबंधन को बताया कि उनकी ओर से फिलहाल रायपुर की किसी कंपनी को चेक जारी नहीं किया गया है। ये जानकारी भी दी गई कि जिस नंबर का चेक बैंक में जमा किया गया है, वह जाली है। फिर मामला आमानाका पुलिस थाना पहुंचा।

मप्र, बिहार और झारखंड में भी करोड़ों की ठगी

शमीम और रमेश ठाकरे ने देश के अलग-अलग प्रांतों में इस तरह की ठगी की है। उसने मप्र के सिवनी, छिंदवाड़ा, कटनी, बालाघाट, इंदौर, भोपाल, झारंखंड के रामगढ़, बिहार की राजधानी पटना समेत अन्य राज्यों के बैंकों में क्लोन चेक के माध्यम सरकारी कंपनियों के खाते से कई करोड़ रुपये निकाले हैं।

गिरोह के कब्जे से दो कार, केनरा बैंक के चेक, एटीएम कार्ड, पासबुक अन्य दस्तावेज जब्त किए गए हैं। ठगी करने शमीम ने सभी का कमीशन बांध रखा था। शमीम, रमेश का 75 फीसद, एजाज का 15 फीसद, सुहास काले का दस फीसद और सुहास के हिस्से के प्रत्येक ट्रांजेक्शन बैंक मैनेजर को 25 लाख देना तय किए थे। उसे दस लाख मिले थे। शमीम और मैनेजर के बीच एक महीने में 84 बार फोन पर बातचीत हुई थी। केनरा बैंक के बाद इस गिरोह ने बैंक ऑफ इंडिया, स्टेट बैंक को भी टारगेट कर रखा था।