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कोरोना की दूसरी लहर में गांव हुए ज्यादा प्रभावित, देश में डाॅक्टरों व चिकित्साकर्मियों की कमी: सीएसई

नई दिल्ली। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की शुक्रवार को जारी नई सांख्यिकीय रिपोर्ट में कोरोना को लेकर गहरी चिंता जताई गई है। इसके मुताबिक कोरोना महामारी ने देश की स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी है। देश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को 76 फीसद डाक्टर, 56 फीसद से अधिक रेडियोग्राफर और 35 फीसद से अधिक लैब तकनीशियनों की जरूरत है। कोरोना की दूसरी लहर में ग्रामीण क्षेत्र में ज्यादा मामले सामने आए, जो ¨चता का विषय है।

दूसरी लहर में ग्रामीण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित

विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने नई सांख्यिकीय रिपोर्ट स्टेट आफ इंडियाज एनवायरमेंट आनलाइन जारी की। उन्होंने कहा कि मरीजों और सुविधाओं की संख्या बताती है कि हमारी स्थिति कैसी है। डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि दूसरी लहर में ग्रामीण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ। मई में छह दिन तक पूरी दुनिया में जो मामले आए उनमें आधे मामले देश में ही आए। उन्होंने कहा कि जलवायु संबंधी जोखिमों के साथ संक्रामक रोग 2006 के बाद पहली बार प्रमुख वैश्विक आर्थिक खतरों की सूची में शामिल हुए हैं।

काफी कम हुआ है टीकाकरण, शहरी बेरोजगारी दर 15 फीसद तक पहुंची

देश में कुल आबादी में केवल 3.12 फीसद को टीका लग पाया है। टीकाकरण का वैश्विक औसत 5.48 फीसद है। इस लिहाज से टीकाकरण में अभी भी कमी है। इस बार ग्रामीण क्षेत्र में फैली महामारी के कारण सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर धीमी हो सकती है। वहीं शहरी बेरोजगारी दर करीब 15 फीसद तक पहुंच गई। मनरेगा के तहत भुगतान देरी से हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन के खतरे को नहीं कर सकते नजरअंदाज

सुनीता नारायण ने कहा कि कोरोना महामारी लोगों को कमजोर बना रही है। ऐसे में हम जलवायु परिवर्तन के खतरे को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। रिपोर्ट बताती है कि 2006 और 2020 के बीच की अवधि में 15 वर्षों में भारत में 12 सबसे गर्म वर्ष दर्ज किए गए। यह रिकार्ड के रूप में सबसे गर्म दशक था। इन आपदाओं के कारण आंतरिक विस्थापन के मामले और नुकसान के लिहाज से भारत का दुनिया में चौथा स्थान रहा।

2008 और 2020 के बीच बाढ़, भूकंप के चलते 37 लाख हुए विस्थापित

2008 और 2020 के बीच, बाढ़, भूकंप, चक्रवात और सूखे के कारण हर साल करीब 3.73 मिलियन लोग विस्थापित हुए।