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एनएच पर आसान हो सफर, देश के विकास का रास्ता बुनियादी ढांचे से निकलता है

रायपुर। सड़कों को विकास की धुरी माना जाता है। बात अगर नेशनल हाईवे (राष्ट्रीय राजमार्ग) की हो तो इनकी भूमिका और भी बड़ी हो जाती है। देश के सभी राज्यों को एक-दूसरे से जोड़कर उनकी तरक्की में अहम योगदान देने वाले इन राष्ट्रीय राजमार्गों केनिर्माण केबाद मेंटेनेंस कार्य को लेकर अक्सर शिकायतें रहती हैं। अरबों रुपये केटेंडर वाले इन राष्ट्रीय राजमार्गों की नियमित मरम्मत नहीं होने का खामियाजा वाहन चालकों व राहगीरों को भुगतना पड़ता है। प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्गों का हाल बहुत बुरा है।

इनकी सबसे ज्यादा दुर्दशा बारिश के दिनों में होती है। इसका दुष्परिणाम बेबस-लाचार जनता कभी हादसों में जान गंवाकर भोगती है तो कभी घंटे भर के सफर में दो-चार घंटे बर्बाद करके। इन दिनों हावड़ा-बांबे राष्ट्रीय राजमार्ग-53 पर रायपुर और भिलाई के बीच टाटीबंध, कुम्हारी, डबरापारा, पावर हाउस चौक और चंद्रा-मौर्या से सुपेला चौक तक पांच स्थानों पर फ्लाई ओवर बनाने का काम चल रहा है। इसके धीमे निर्माण के चलते इस मार्ग पर रोजाना रात को लंबा जाम लग रहा है।

हालत यह है कि बमुश्किल 30 से 35 मिनट के सफर को पूरा करने में इन दिनों तीन से साढ़े तीन घंटे तक लग रहे हैं। इस दौरान जान का जोखिम अलग से बनी रहता है। पिछले दिनों ही भिलाई में सड़क केगड्ढे में भरे पानी में फिसलकर गिरने के बाद हाईवा की चपेट में आने से एक परिवार के तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। यह हादसा यह बताने केलिए काफी है कि चाहे राष्ट्रीय राजमार्ग हों या फिर शहरी अथवा ग्रामीण सड़कें, उनकी मरम्मत कितनी जरूरी है।

एनएच-53 पर रायपुर-भिलाई के बीच ही नहीं, प्रदेश केअन्य हिस्सों में भी एनएच की दुर्दशा छिपी नहीं है। एनएच पर अंबिकापुर-झारखंड केबीच की जो दूरी पहले दो घंटे में तय हो जाती थी, अब चार घंटे से ज्यादा लग रहे हैं। बस्तर में एनएच-30 में जो काम इन दिनों चल रहा है, वह 2018 तक पूरा हो जाना था। इस मार्ग पर तीन स्थानों पर टोल टैक्स भी लिया जा रहा है, लेकिन रायपुर-जगदलपुर केबीच की जो दूरी पांच घंटे में तय हो जाती थी, आज सात घंटे से ज्यादा लग रहे हैं।

यदि एनएच के निर्माण से लेकर मेंटनेंस तक की बात करें तो नेशनल हाईवे अथारिटी आफ इंडिया की पूरी जिम्मेदारी बनती है। कुछ हिस्सों में राज्य सरकारें भी जिम्मेदारी होती हैं, जो वह पीडब्ल्यूडी के जरिए कराती हैं। लोगों की कीमती जिंदगी को छीनने और समय व खर्च को बढ़ाने के इन जिम्मेदारों को एक बार फिर अपनी भूमिका पर विचार करना होगा। जहां तक सरकारों की बात है तो उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले हर वह सख्त कदम उठाना चाहिए, ताकि जोखिम भरा यह सफर आसान और सुगम हो सके।