तालिबान का अर्थ है सपनों का टूटना, सब कुछ खत्म होना, एक अफगानी महिला की जुबानी जानें दर्द
काबुल। तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद विश्व बिरादरी को सबसे बड़ा डर वहां मौजूद महिलाओं को लेकर लग रहा है। हालांकि, तालिबान कह रहा है कि वो महिलाओं को इस्लामिक कानूनों के दायरे में रखते हुए सभी अधिकार देने पर राजी है। वहीं तालिबान ने महिलाओं को काम करने की भी छूट देने की घोषणा की है। इतना ही नहीं तालिबान ने कहा है कि वो उनकी सरकार तक में शामिल हो सकती हैं। लेकिन, वहीं दूसरी तरफ तालिबान की इन घोषणाओं को अफगान महिलाएं महज दिखावा बता रही हैं।
अफगानिस्तान में एजूकेशन एक्टिविस्ट पश्ताना जलमई खान दुरानी भी इनमें से ही एक हैं। वो लर्न अफगान की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। 23 वर्षीय पश्ताना का कहना है कि वो तालिबानियों के वादों और उनके दिए गए बयानों को लेकर काफी सजग हैं। उनके मुताबिक तालिबान बात करने के लिए निकलना चाहते हैं, लेकिन, अब तक ऐसा हुआ नहीं है। कई अफगानी महिलाएं तालिबान के डर की वजह से देश छोड़ चुकी हैं और कई इसको लेकर प्रयासरत हैं। कई महिलाओं की नौकरी या तो चली गई है या जाने वाली है। बता दें कि कंधार में रहने वाली पश्ताना के प्रांत पर तालिबान ने पिछले सप्ताह ही कब्जा किया था।
तालिबान यहां पर गरीब लड़कियों की शिक्षा को लेकर काम करती हैं। कंधार पर कब्जे के बाद पश्ताना पर घर में रहने के लिए तालिबान ने दबाव डाला था। उनका कहना है कि तालिबान का अर्थ है आपके सपनों का टूटना, आपके लक्ष्यों और एंबीशन समेत सब चीजों का खत्म हो जाना। एक टीवी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि तालिबान के अफगानिस्तान के कब्जे के बाद वो पूरी तरह से टूट गई हैं और निराश हैं। उन्होंने इसको सबसे बड़ी क्षति बताया है। उन्होंने ये भी कहा कि वो नहीं जानती हैं कि उनके ने लोग कहां पर है और ये सब कब और कैसे खत्म होगा।
उन्होंने बताया कि तालिबान के कब्जे के बाद कई लोग अपना घर छोड़कर जा चुके हैं। जो लोग यहां पर बचे हैं उनकी सोच तालिबान को लेकर वही है जो उनकी है। उन्होंने अशरफ गनी की भी तीखी आलोचना करते हुए कहा है कि ऐसे लोगों पर शर्म आती है जो लोग आवाम की हिफाजत की बात करते थे।