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सोयाबीन तेल की कीमत एक साल में हुई करीब दोगुनी, सरसों, मूंगफली व सूरजमुखी तेल के दाम भी खूब बढ़े

भोपाल। कोरोना संक्रमण के संकट में लोगों को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ रही है। खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले एक वर्ष के दौरान भारी इजाफा हुआ है। सबसे ज्यादा खपत वाले सोयाबीन तेल की कीमत तो एक साल में लगभग दोगुना हो गई है। वहीं सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी तेल के दाम भी खूब बढ़े हैं।

जानकारों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल की कीमत बढ़ने की वजह से देश में यह तेजी आई है। पिछले वर्ष मई सोयाबीन तेल की खुदरा कीमत 90-95 रुपये प्रति लीटर थी, जो अब 170 रुपये प्रति लीटर तक मिल रहा है। सरसों तेल की कीमत 135 रुपये बढ़कर 220 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गई है।

सोयाबीन तेल के दामों में भले ही वृद्धि हो रही है, लेकिन मध्य प्रदेश समेत देश के अन्य हिस्सों में सोयाबीन उत्पादक किसानों को इसका फायदा कम ही मिला है। इस बार येलो मोजेक बीमारी की वजह से पैदावार कम हुई।

सीहोर के किसान एमएस मेवाड़ा बताते हैं एक साल पहले सोयाबीन 2,900 रुपये प्रति क्विंटल (29 रुपये प्रति किलो) बिका था, लेकिन इस साल यह 20 रुपये प्रति किलो बिका। किसान स्वरूप सिंह कहते हैं कि कुछ व्यापारी और किसान अच्छी गुणवत्ता का सोयाबीन उसकी कटाई के वक्त नहीं बेचकर अब 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। इस समय उन्हें फायदा हो रहा है।

हालांकि, इस बार सरसों उत्पादकों को अच्छी कीमत मिली। पिछले साल सरसों उत्पादकों को 40 रुपये प्रति किलो का भाव मिला था, जबकि इस साल उन्हें 70 रुपये प्रति किलो तक का भाव मिला है। वहीं, भोपाल किराना व्यापारी महासंघ के महासचिव अनुपम अग्रवाल का कहना है कि खाद्य तेल के दाम अंतराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल में पेट्रोल-डीजल के दाम भी काफी बढ़ गए हैं। इससे परिवहन का खर्च बढ़ा है। इसका असर भी उपभोक्ताओं की जेब पर दिख रहा है।

खाद्य तेलों के मामले में भारत अपनी आधी से लेकर तीन-चौथाई तक जरूर विदेश से आने वाले कच्चे खाद्य तेल से पूरी करता है। भारत में खाद्य तेल की मांग का बहुत कम हिस्सा घरेलू आपूर्ति से पूरा हो पाता है। रिफाइंड तेल में मिलाए जाने वाले कई जरूरी रसायनों की आपूर्ति प्रभावित होने से भी दामों में इजाफा हुआ है।

इन कारणों से महंगा हो रहा तेल

– भारत सहित कई देशों में सोयाबीन उत्पादन में कमी।

– मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे प्रमुख पाम ऑयल उत्पादकों की तरफ से आपूर्ति में बाधा।

– मांग-आपूर्ति का गणित बिगड़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमत में इजाफा।

– दुनियाभर के कई बाजारों में उत्पादन पर लेबर और परिवहन का खर्च बढ़ना।