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72 घंटे में है धान उठाने का प्रविधान, चार माह से अधिक बीत गए

कवर्धा। कबीरधाम जिले में बीते साल धान खरीदी के दौरान करीब 90 हजार से अधिक किसानों से 39 लाख क्विंटल धान की खरीदी हुई है। खरीदी बंद हुए लगभग चार माह हो रहे हैं, लेकिन अभी में जिले के खरीदी केंद्रों में पांच लाख क्विंटल धान रखा हुआ है।

छत्तीसगढ़ शासन की गाइडलाइन के अनुसार धान का उठाव 72 घंटे के अंदर हो जाना चाहिए। संग्रहण केंद्रों में करोड़ों रुपये का धान सड़ रहा है, जिसका नुकसान समितियों को उठाना पड़ रहा है। इसी के विरोध में सोमवार को जिले की 90 समितियों में कार्यरत 400 कर्मचारियों ने इस्तीफा दे दिया।

जिले में 31 मई तक उठाव का लक्ष्य था, लेकिन नहीं उठा सके

जिले में धान का उठाव करने 31 मई तक का समय रखा गया था। लेकिन तय समय पर उठाव नहीं हुआ है। केंद्रों से पहले लगातार परिवहन होने से फरवरी तक खाली हो जाने वाले धान खरीदी केंद्र इस वर्ष अभी तक खचाखच भरा हुआ है। इसका प्रमुख कारण है धान का खरीदी केंद्रों से उठाव न होना।

खास बात यह है कि पहले जूट के बारे में धान भरा जाता था किन्तु इस वर्ष अधिकांश धान प्लास्टिक की बोरी में भरा गया है और समय पर धान का उठाव न होने से तेज धूप के चलते प्लास्टिक बोरियां फट रही हैं जिससे धान जमीन में बिखर रहे हैं और कंकड़ धूल में मिल रहे हैं।

खरीदी केंद्रों में बाड़ लगाने के बावजूद पशु प्रवेश कर नुकसान पहुंचा रहे हैं। समिति कर्मचारी दिन रात मेहनत कर चौकीदारी कर रहे हैं। वे किसी तरह पशुओं से तो धान को बचाने की कोशिश कर रहे हैं किन्तु कंकड़ मिट्टी में मिलने से कैसे बचा पाएंगे? पिछले दो वर्षों के करोड़ों रुपये के धान भंडारण केंद्रों में अब तक सड़ रहे हैं। अब लगता है इस वर्ष का धान खरीदी केंद्रों में पड़े पड़े बेकार हो जाएंगे।

इस साल बंफर खरीदी हुई

धान का रकबा जिले में बीते साल ज्यादा था,जिसे इस वर्ष कम करने की तैयारी है। क्योंकि बीते वर्ष जिले में बंफर धान खरीदी हुई। जिस तरह से लगातार किसानों का रुझान धान की खेती पर बढ़ रहा है, उसके चलते ऐसा लग नहीं पा रहा है कि धान के रकबे में कमी आएगी।

खरीफ में अरहर, मक्का, ज्वार, कोदो, कुटकी, रागी, गन्नाा एवं सोयाबीन सहित अन्य फसलों पर किसानों की ध्यान केंद्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही साथ राज्य शासन के द्वारा इन फसल उत्पादकों को कृषि आदान सहायता योजना के तहत 9000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से राजीव गांधी योजना में शामिल करने की बात कही जा रही है।

इसके चलते काफी तादाद में किसानों के द्वारा पारंपरिक खेती के रूप में इन फसलों को चुना भी जा रहा है, किंतु इन तमाम हालातों के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि जिले में इस वर्ष धान के रकबे में कोई कटौती हो पाएगी।

अतिशेष धान की निलामी भी नहीं हो सकी

धान का उठाव किए जाने को लेकर इस साल खरीफ विपणन वर्ष 2020-21 में सरप्लस (अतिशेष) धान की निलामी की गई। लेकिन जिले में इसका भी लाभ नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि कम ही संख्या में धान की निलामी हुई है। जिसका रेट करीब 1400 से 1500 रुपये प्रति क्विंटल ही गया है। जबकि शासन ने किसानों से 2500 रुपये प्रति क्विंटल में धान खरीदी किया है।