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इकोनॉमी में कर्ज से निपटने की क्षमता, अभी जीडीपी के मुकाबले कर्ज का स्तर 90 फीसद, पांच वर्षों में 85 फीसद पर आएगा

नई दिल्ली। कोरोना की वजह से केंद्र सरकार के राजस्व में जिस तरह से कमी हुई है, उसने सरकार को ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेने के लिए बाध्य कर दिया है। यह हालात अगले दो-तीन वर्षों तक बने रह सकते हैं। इसके बावजूद भारत में कर्ज बोझ की स्थिति संतुलित ही रहेगी, यानी कर्ज अदायगी को लेकर कोई समस्या नहीं आएगी। भारतीय इकोनॉमी की स्थिति कर्ज को संभालने लायक है। देश की जीडीपी के मुकाबले सरकार पर कर्ज का अनुपात अभी 90 फीसद पहुंच गया है। लेकिन यह वर्ष 2026 तक घटकर 85 फीसद पर आएगा। यह बात आरबीआइ ने एक हालिया रिपोर्ट में कही है। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि भारत सरकार को राजस्व बढ़ाने के तमाम प्रयास करने होंगे।

आरबीआइ ने कहा है कि कोरोना के काल में दूसरे विकासशील देशों ने भी बड़े पैमाने पर कर्ज लिया है। लेकिन दूसरे देशों के मुकाबले भारत बेहतर स्थिति में है। आरबीआइ के मुताबिक, देश बढ़ते वित्तीय बोझ को सहन करने में सक्षम है। वर्ष 2020-21 में भारत ने बजटीय राजस्व का 25 फीसद हिस्सा कर्ज चुकाने में खर्च किया। लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत पर बकाये कर्ज की परिपक्वता अवधि 11 वर्षो से ज्यादा की है और इसमें विदेशी कर्ज की हिस्सेदारी दो फीसद ही है।

इसका मतलब यह हुआ कि अचानक विदेशी निवेश निकालने की स्थिति में भी देश को कर्ज को चुकाने में खास दिक्कत नहीं होगी। आकस्मिक परिस्थितियों में भारत अपनी मुद्रा में भी कर्ज चुकाने की क्षमता रखता है। साथ ही भारत की आर्थिक विकास दर विदेशी कर्ज पर औसत देय ब्याज में होने वाली सालाना वृद्धि दर से ज्यादा रहेगी।

चालू वित्त वर्ष के शुरुआती चार महीनों यानी अप्रैल-जुलाई, 2020 के दौरान केंद्र व राज्यों के राजस्व में भारी गिरावट हुई। कोरोना पर लगाम लगाने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन से यह स्थिति उत्पन्न हुई है। इसकी वजह से सरकार को बाजार से काफी उधारी लेनी पड़ी। आम बजट 2020-21 में बाजार से सात लाख करोड़ रुपये की उधारी लेने की योजना थी, लेकिन वास्तविक तौर पर 12.80 लाख करोड़ रुपये की उधारी लेनी पड़ी है। वर्ष 2021-22 में भी सरकार ने 12.05 लाख करोड़ रुपये की उधारी लेने की योजना बनाई है।

आरबीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ केंद्र सरकार पर कर्ज का स्तर जीडीपी के मुकाबले 64.3 फीसद हो गया है और राज्यों को मिला दिया जाए तो यह 90 फीसद हो गया है। बहरहाल, आरबीआइ यह मानता है कि सरकार का कर्ज प्रबंधन भविष्य में बेहतर रहेगा। इसके लिए सबसे बड़ा तर्क यह दिया गया है कि भारत की आर्थिक विकास दर आने वाले वर्षों में काफी अच्छी रहेगी।