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उत्तराखंड के इस मंदिर में शिवजी के साथ होती है राहु की पूजा, यहीं गिरा था दैत्य स्वरभानु का कटा हुआ सिर

उज्जैन. धार्मिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान स्वरभानु दैत्य ने छल से अमृत पी लिया तो भगवान विष्णु ने उसका मस्तक काट दिया। अमृत पीने के कारण वो मरा नहीं, लेकिन उसका शरीर दो हिस्सों में बंट गया।

उस राक्षस के सिर को राहु और धड़ को केतु कहा जाता है (Rahu Temple)। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा भी होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं आद्य शंकराचार्य (Shankaracharya) ने करवाई थी। जब वे दक्षिण से हिमालय की यात्रा कर रहे थे, उस समय उन्हें इस स्थान पर राहु के प्रभाव का आभास हुआ। इसलिए उन्होंने इसी स्थान पर राहु का मंदिर बनवाया।

मान्यता है कि इसी स्थान पर गिरा था राहु का सिर
– पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन से स्वरभानु असुर का सिर काटा तो वो सिर इसी स्थान पर आकर गिरा था। इसलिए इस स्थान पर राहु के मंदिर का निर्माण करवाया गया।
– इस मंदिर में भगवान शिव के साथ राहु मूर्ति भी स्थापित है। मंदिर की दीवारों के आकर्षक नक्काशी नजर आती है। इन चित्रों में राहु के कटे हुए सिर व सुदर्शन चक्र बनाए गए हैं। इसी वजह से इसे राहु मंदिर नाम दिया गया।
– केदारखंड के कर्मकांड भाग में वर्णित श्लोक ‘ॐ भूर्भुव: स्व: राठेनापुरादेभव पैठीनसि गोत्र राहो इहागच्छेदनिष्ठ’ के अनुसार कई विद्वान मानते हैं कि राहु ने ही इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना की थी।
– वास्तु शिल्प एवं प्रतिमाओं की शैली के आधार पर पैठाणी का यह शिव मंदिर और प्रतिमाएं आठवीं-नवीं सदी के बीच के प्रतीत होते हैं। ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।
– राहु से संबंधित दोष दूर करने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं और राहु को मूंग की खिचड़ी का भोग लगाते हैं। यहां के भंडारे में भी मूंग की खिचड़ी को ही प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।

कैसे पहुंचें?
– जिले के प्रमुख स्थल जैसे कोटद्वार, लैंसडाउन, पौड़ी, श्रीनगर आदि टिहरी-मुरादाबाद राज्य राजमार्ग से अच्छी तरह से जुड़े है।
– कोटद्वार, ऋषिकेश, हरिद्वार और रामनगर जैसे रेलवे स्टेशन पहुंच की स्थिति बहुत अच्छी है। यहां से नियमित बसें, टैक्सी चलती है।
– निकटतम हवाई अड्डा जॉलीग्रांट (देहरादून) है जो कि जिला मुख्यालय से 155 किमी दूर है।