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प्लास्टिक है पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन, इसके विकल्प को मिले प्रोत्साहन

एक बार फिर उम्मीद जगी है कि देश के लिए लाइलाज नासूर बन रहे एक बड़े पर्यावरणीय संकट का निदान हो जाएगा। अगले साल 15 अगस्त तक पूरे देश में प्रयोग होने वाली प्लास्टिक वस्तुओं का निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर नियमों के तहत पाबंदी की घोषणा सरकार ने की है। सिंगल यूज प्लास्टिक पर दो चरणों में पाबंदी लगेगी। पहला चरण जनवरी 2022 से शुरू होगा जिसमें प्लास्टिक के झंडे, गुब्बारे व कैंडी स्टिक बंद होंगी और फिर जुलाई 2022 से प्लेट, कप, ग्लास, कटलरी, पैकिंग फिल्म्स, निमंत्रण कार्ड, सिगरेट के पैकेट आदि चीजों के उत्पादन व इस्मेमाल पर पाबंदी लग जाएगी।

देखा जाए तो लोग यह मानते हैं कि पालीथीन थैली नुकसानदेह है, लेकिन कोई न कोई मजबूरी जताकर उसे हाथ में लेकर चल देते हैं। विडंबना है कि हर इंसान यह स्वीकार करता है कि पालीथीन प्रकृति-समाज के लिए हानिकारक है, लेकिन उसका मोह ऐसा है कि किसी न किसी बहाने से उसे छोड़ नहीं पा रहा है। शहरों की सुंदरता पर इससे ग्रहण लग रहा है। पालीथीन हमारे वर्तमान और भविष्य को नष्ट करने पर आमादा है। यह मानवोचित गुण है कि इंसान जब किसी सुविधा का आदी हो जाता है तो उसे तभी छोड़ पाता है जब उसका विकल्प हो। यह भी सच है कि पालीथीन बीते दो दशकों के दौरान 20 लाख से ज्यादा लोगों के जीविकोपार्जन का जरिया बन चुका है जो इसके उत्पादन, व्यवसाय, पुरानी पन्नी एकत्र करने जैसे काम में लगे हैं। वहीं पालीथीन के विकल्प के रूप में जो सिंथेटिक थैले बाजार में उपलब्ध हैं, वे महंगे होने के साथ कमजोर और प्राकृतिक या घुलनशील सामग्री से नहीं बने हैं और उनके भी कई विषम प्रभाव हैं। कुछ स्थानों पर कागज के बैग, लिफाफे मुफ्त में बांटे भी गए, पर मांग की तुलना में उनकी आपूर्ति कम थी।

यदि वास्तव में बाजार में पालीथीन का विकल्प तलाशना है तो पुराने कपड़े के थैले बनवाना एकमात्र विकल्प है। इससे कई लोगों को विकल्प मिलता है, पालीथीन निर्माण की छोटी-छोटी इकाई लगने से लोगों को कपड़े के थैले बनाने का, उसके व्यापार में लगे लोगों को उसे दुकानदार तक पहुंचाने का और आम लोगों के सामने लाने-ले जाने का। यह सच है कि जिस तरह पालीथीन की मांग है उतनी कपड़े के थैले की नहीं होगी। चूंकि थैला कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन कपड़े के थैले की कीमत, उत्पादन की गति पालीथीन की भांति तेज नहीं होगी। सबसे बड़ी दिक्कत है दूध और जूस जैसे द्रव पदार्थो आदि के व्यापार की। इसके लिए एल्युमिनियम या अन्य मिश्रित धातु के कंटेनर बनाए जा सकते हैं जिनमें विविध प्रकार के खाद्य पदार्थो की पैकिंग की जा सकती है। सबसे बड़ी बात घर से बर्तन ले जाने की आदत फिर से लौट आए तो खाने का स्वाद, उसकी गुणवत्ता, दोनों ही बनी रहेगी। आजकल बाजार माईक्रोवेव में गरम करने लायक एयरटाइट बर्तनों से पटा पड़ा है, ऐसे कई साल तक इस्तेमाल होने वाले बर्तनों को भी विकल्प के तौर पर विचार किया जा सकता है

प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए बायो प्लास्टिक को बढ़ावा देना चाहिए। बायो प्लास्टिक चीनी, चुकंदर, भुट्टा जैसे जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थो के इस्तेमाल से बनाई जाती है। हो सकता है कि शुरुआत में कुछ साल पन्नी की जगह कपड़े के थैले व अन्य विकल्प के लिए कुछ सब्सिडी दी जाए तो लोग अपनी आदत बदलने को तैयार हो जाएंगे। लेकिन यह व्यय पालीथीन से हो रहे व्यापक नुकसान की तुलना में बेहद कम ही होगा। सनद रहे कि 40 माइक्रोन से कम पतली पन्नी सबसे ज्यादा खतरनाक होती है। सरकारी अमलों को ऐसी पालीथीन उत्पादन करने वाले कारखानों को ही बंद करवाना पड़ेगा।