स्वयं भू है मां महाकाली, जिसकी मान्यता कोलकाता की मां काली से जुड़ी है
रायपुर। राजधानी में प्राचीन समय से तालाबों और मंदिरों के लिए नाम से ख्याति प्राप्त है। शहर में इस समय कई ऐतिहासिक मंदिर है, जिसकी सबकी अलग-अलग मान्यता है। इसी कारण है कि छत्तीसगढ़ को धर्मभूमि के रूप में भी माना जाता है। इसमें से रायपुर के एक ऐतिहासिक मंदिर है, जो आकाशवाणी चौक के पास स्थित मां महाकाली का मंदिर है, जिसकी मान्यता कोलकाता के काली से जुड़ी हुई है।
मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष जगदीश कलश, सचिव डीके दुबे, ललिता बाई पांडे ने बताया कि मां महाकाली का मंदिर करीब 100 वर्ष पुरानी है। मां स्वयं भू-फोड़कर यहां विराजमान है। माता नीम पेड़ के नीचे से निकली है। कह जाता है कि कोलकाता में काली का शरीर है, वहीं आत्मा कहां है, इसकी खोज के लिए कामाख्या के नागा साधुओं निकले थे।
तभी नागा साधुओं ने नीम और बरगद के पेड़ के पास अपना चार महीने धुनी रामाया। तब नागा साधुओं का कहा था कि एक दिन यहां महाकाली प्रकट होंगी। वहीं, नागा साधुओं ने बरगद पेड़ के पास भैरव बाबा की भी पूजा अर्चना की थी, भैरव बाबा की प्रतिमा है।
1949 में शुरू हुई माता की पूजा
महाकाली माता का पूजा 1949 में एक पांडे परिवार ने शुरू की है। उस समय चबूतरा बनाकर पूजा-अर्चना की जाती थी। और 1992 में भव्य मंदिर बनाया। जहां इस समय रास्ते से गुजरने वाले लोग मंदिर के निकट से मां काली के दर्शन कर सकते हैं।
दोनों नवरात्र में जलाते है सैकड़ों जोत
मंदिर के ट्रस्टी डीके दुबे ने बताया कि माता स्वयं भू है। जहां इसकी मान्यता राजधानी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेशभर में फैली हुई है। इसी कारण दोनों नवरात्र में भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए सैकड़ों ज्योति प्रज्ज्वलित किया जाता है। फिलहाल अभी कोविड-19 के दौर के कारण परंपरा निभाते हुए यहां कम ही जोत प्रज्ज्वलित किया गया है।
नवरात्र में होती है विशेष पूजा
महाकाली माता का मंदिर का पूजा नवरात्र में विशेष रूप से की जाती है। यहां सुबह 6:30 बजे, शाम सात बजे फिर उसके बाद अभी कोविड के कारण रात 8:30 से नौ बजे तक आरती की जा रही है। फिलहाल अभी कोविड के कारण किसी भी भक्त को प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।